हरसौरा गांव से शुरू होकर अलवर तक समाज और चिकित्सा सेवा में मिसाल बने डॉ. सुरेंद्र जैन का जीवन एक प्रेरणा है- जो निःस्वार्थ सेवा, नैतिकता और समाज कल्याण का प्रतीक है।
मिशनसच न्यूज , अलवर । भारतवर्ष में जब भी चिकित्सकों की बात होती है, तो समाज उन्हें धरती का भगवान कहकर संबोधित करता है। लेकिन आधुनिक दौर में चिकित्सा क्षेत्र में भी जब व्यवसायिकता हावी हो चली है, ऐसे समय में कुछ विरले चिकित्सक आज भी निःस्वार्थ सेवा को ही अपना जीवन उद्देश्य मानते हैं। डॉ. सुरेंद्र जैन ऐसे ही प्रेरणास्रोत चिकित्सकों में गिने जाते हैं, जिनका जीवन समाज सेवा को समर्पित रहा है।
गांव से आरंभ, सेवा की दिशा में यात्रा
डॉ. सुरेंद्र जैन का जन्म अलवर जिले की बानसूर तहसील के हरसौरा गांव में हुआ। उनके पिता स्व. भोरेलाल जैन गांव के सरपंच और बाद में बानसूर पंचायत समिति के पहले प्रधान बने। उस समय गांव में एकमात्र जैन परिवार होने के बावजूद, उनकी प्रतिष्ठा पूरे क्षेत्र में थी।
गांव से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने राजकीय प्रताप स्कूल और बाद में यशवंत स्कूल, अलवर से विज्ञान विषय में अध्ययन किया। पिता का सपना था कि उनके आठ पुत्रों में से कोई एक डॉक्टर बने, और इस सपने को साकार किया डॉ. सुरेंद्र जैन ने। PMT में सफलता के बाद उन्हें जेएलएन मेडिकल कॉलेज, अजमेर में प्रवेश मिला और उन्होंने MBBS की डिग्री प्राप्त की। इंटर्नशिप के दौरान उन्हें अकबरपुर पीएचसी, अलवर में सेवा का अवसर मिला।
व्यवहार, सेवा और लोकप्रियता की मिसाल
वामपंथी विचारों से प्रभावित अकबरपुर जैसे क्षेत्र में रहते हुए भी डॉ. जैन ने अपने मिलनसार स्वभाव, निःस्वार्थ सेवा और नैतिक मूल्यों से लोगों का दिल जीत लिया। वे रोज़ाना अलवर से अकबरपुर आकर मरीजों की सेवा करते और वापसी के रास्ते में पड़ने वाले गाँवों—धवाला, सिलीसेढ़, सावड़ी, उमरैण आदि में भी रोगियों को नि:शुल्क परामर्श और दवा देते।
उन्होंने जनसहयोग से पीएचसी के लिए भूमि खरीद कर उसे आज के समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में परिवर्तित कर दिया, जो उनके दूरदर्शी सोच और जनकल्याण की भावना का प्रतीक है।
सरकारी सेवा में भी जनसेवा का भाव बरकरार
1984 में डॉ. जैन का स्थानांतरण अलवर सामान्य चिकित्सालय में हुआ, जहां उन्होंने 31 अगस्त 2011 तक सीनियर मेडिकल ऑफिसर के रूप में सेवा दी। मलेरिया विभाग से लेकर जनस्वास्थ्य शिविरों तक, उन्होंने कभी सेवा के मूल उद्देश्य से समझौता नहीं किया।
उनकी विशेषता रही है—किसी से फीस के लिए आग्रह नहीं करना। जो दे, स्वीकार; जो न दे, उसे सम्मानपूर्वक सेवा देना। आलमारी में रखी दवाइयाँ वे ज़रूरतमंद मरीजों को अपने खर्च पर उपलब्ध करवाते हैं।
संगठन, खेल और समाज सेवा में सक्रिय योगदान
डॉ. जैन ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, अलवर को पुनर्जीवित किया और 1994 से लगातार चार वर्ष सचिव तथा 1999-2000 तक अध्यक्ष रहे। उन्हें राज्य स्तर पर बेस्ट सचिव का पुरस्कार भी मिला।
वे अलवर जेसीज़, महावीर इंटरनेशनल, अलवर बैडमिंटन एसोसिएशन और बास्केटबॉल संघ से भी जुड़े रहे। वर्तमान में वे रेडक्रॉस सोसाइटी के उपाध्यक्ष और महावीर इंटरनेशनल के संरक्षक हैं।
खेल प्रेमी होने के नाते उन्होंने राज्यस्तरीय बास्केटबॉल प्रतियोगिताओं में भाग लिया, और आज भी जयकृष्ण क्लब में प्रतिदिन खेलते हैं। युवाओं जैसी फुर्ती और ऊर्जा आज भी उनमें देखी जा सकती है।
शिविरों से लाखों को मिला उपचार
डॉ. जैन ने अब तक अपने शिविरों के माध्यम से एक लाख से अधिक मरीजों को लाभान्वित किया है। उन्होंने कई परीक्षणों में 30% तक रियायत दिलाने में भी सफलता पाई है।
तत्कालीन ज़िला कलेक्टर और वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त श्री सुनील अरोड़ा ने भी उन्हें स्व. नटवर सिंह के क्षेत्र में मालाखेड़ा में नेत्र शिविर लगाने के लिए आमंत्रित किया था। इस कार्य के लिए 1987 में स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित भी किया गया।
सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा जारी
सेवानिवृत्ति के बाद वे प्रतिदिन प्रातः 9 से 11 बजे तक महावीर इंटरनेशनल द्वारा संचालित “आचार्य हस्तीमल चिकित्सालय” में निःशुल्क चिकित्सा सेवा दे रहे हैं। इसके उपरांत अपने आवास—हाउसिंग बोर्ड, मनुमार्ग, अलवर—में भी मरीजों का उपचार करते हैं, जहां सदा रोगियों की भीड़ लगी रहती है।
डॉ. सुरेंद्र जैन का युवाओं के लिए स्पष्ट संदेश है—
“नशे से दूर रहें, नियमित व्यायाम और प्राणायाम करें, ताकि जीवन स्वस्थ, सार्थक और ऊर्जावान बना रहे।”
उनका जीवन स्वयं निस्वार्थ सेवा, सादगी, सामाजिक प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय चेतना का उदाहरण है। वे सचमुच इस कहावत को चरितार्थ करते हैं—
“वह चिकित्सक ही क्या, जो केवल दवा दे; सच्चा चिकित्सक वही है, जो सेवा से जीवन संवार दे।”
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