राजस्थान टॉप किया तो लोगों ने कहा प्रतिभाएं गांवों से ही निकलती है
राजस्थान के नौगांवा से निकलकर राज्य टॉपर बने डॉ. विपिन जैन ने रेडियोलॉजी को संवेदना से जोड़ा और सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाया।
मिशनसच न्यूज, अलवर। डॉ. विपिन जैन राजस्थान के अलवर जिले के छोटे से कस्बे नौगांवा में जन्मे और प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले जैन ने यह सिद्ध कर दिखाया कि प्रतिभा किसी स्थान की मोहताज नहीं होती। एक साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर उन्होंने राज्य स्तर पर मेडिकल प्रवेश परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया और फिर चिकित्सा के क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान बनाई।
शिक्षा में उत्कृष्टता की मिसाल
डॉ. जैन ने कक्षा सात तक की पढ़ाई नौगांवा में की, इसके बाद अलवर शहर के हैप्पी स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। वर्ष 1990 में उनका चयन एमबीबीएस के लिए हुआ और वे बीकानेर मेडिकल कॉलेज चले गए। इसके बाद उन्होंने जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज से रेडियोलॉजी में एम.डी. किया। इस दौरान उनका चयन प्रतिष्ठित एम्स, दिल्ली के लिए भी हुआ, परंतु अपने राज्य राजस्थान के प्रति निष्ठा और सेवा भावना के चलते उन्होंने यहीं रहकर कार्य करने का निर्णय लिया।
स्वास्थ्य सेवा में दो दशक
वर्तमान में डॉ. विपिन जैन अलवर शहर के बिजलीघर चौराहे पर स्थित अपने सोनोग्राफी सेंटर के माध्यम से लगभग दो दशकों से जनसेवा में संलग्न हैं। उनके केंद्र पर प्रतिदिन सैकड़ों मरीज जांच के लिए आते हैं, और डॉ. जैन न केवल तकनीकी दक्षता बल्कि अपनी मानवीय संवेदनशीलता के लिए भी जाने जाते हैं। उनका मानना है कि “मरीज को सिर्फ मशीन नहीं देखती, डॉक्टर का दृष्टिकोण भी इलाज का हिस्सा होता है।” इससे पहले इन्होंने दो साल तक सरकारी सेवा की। वर्ष 2005 में अपना संस्थान खोल लिया।
परिवार: प्रेरणा और सहयोग की नींव
डॉ. जैन के जीवन में उनकी पत्नी संगीता जैन उनकी सबसे बड़ी सहयोगी हैं, जो अस्पताल प्रबंधन का दायित्व कुशलता से निभाती हैं। उनकी पुत्री जूही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई से मास्टर्स इन पब्लिक हेल्थ कर रही हैं। दूसरी बेटी शर्लिन नीट की तैयारी में जुटी है और पुत्र देवांश जेईई के लिए अध्ययनरत है। यह संपूर्ण परिवार न केवल शिक्षा और सेवा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक मूल्यों की मिसाल भी है।
स्वास्थ्य और सेवा ही मुख्य ध्येय
डॉ. जैन की दैनिक दिनचर्या में मॉर्निंग वॉक से लेकर परिवार संग समय बिताने तक हर पहलू शामिल है। वे जानते हैं कि “स्वस्थ शरीर और संतुलित पारिवारिक जीवन ही सच्ची सेवा का आधार है।” यही कारण है कि वे खुद के साथ-साथ अपने पूरे परिवार के स्वास्थ्य और मनोदशा पर विशेष ध्यान देते हैं।
कर्म ही पूजा – लक्ष्य सिर्फ सेवा
डॉ. जैन का जीवन उद्देश्य है कि जब तक संभव हो, वे अधिक से अधिक मरीजों की सेवा करें। वे कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि मेरे पास आने वाला कोई भी मरीज निराश होकर न जाए। मेरी कोशिश रहती है कि मेरी जांच और सलाह उसके लिए संजीवनी सिद्ध हो।”
संवेदनशीलता और सफलता के क्षण
रेडियोलॉजी एक तकनीकी विधा है, परंतु डॉ. जैन उसमें मानवीय संवेदना का पुट जोड़ते हैं। वे बताते हैं कि कई बार गांवों से आए मरीज इतने भयभीत होते हैं कि लगता है कुछ नहीं हो पाएगा, परंतु जांच और समय पर दी गई सलाह से जब वे स्वस्थ होकर लौटते हैं, तो वही चेहरे आभार और मुस्कान से भर जाते हैं – “वही मेरे लिए असली पुरस्कार होता है।”
युवाओं के लिए संदेश
डॉ. जैन युवाओं से आग्रह करते हैं कि वे पढ़ाई को बोझ नहीं, प्रेरणा समझें। उनका कहना है, “आत्महत्या कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती। जो कार्य दिल को भाए, उसे पूरी लगन से करें। जीवन में दिशा भटकना सामान्य है, परंतु वापस लौटना भी उतना ही संभव है।”
नौगांवा से अलवर तक की यात्रा
डॉ. जैन के पिता श्री प्रेमचंद जैन और माता श्रीमती विमला जैन का परिवार नौगांवा का प्रतिष्ठित परिवार रहा है। विपिन जैन ने यहीं से पढ़ाई शुरू की और अपने जीवन की नींव रखी। आज यह परिवार अलवर शहर में सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर रहा है, और सेवा के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रहा है।
रेडियोलॉजी: तकनीक से संवेदना की ओर
रेडियोलॉजी को अक्सर एक तकनीकी और मशीनी विधा माना जाता है, जहां स्क्रीन और रिपोर्ट ही अंतिम निष्कर्ष होती हैं। परंतु डॉ. विपिन जैन इस धारणा को तोड़ते हैं। उनके लिए हर अल्ट्रासाउंड सिर्फ एक इमेज नहीं, बल्कि एक जीवन की कहानी है। वे कहते हैं, “हर रिपोर्ट के पीछे एक परिवार की उम्मीद होती है, एक माँ की बेचैनी, एक पिता की चिंता और किसी की जिंदगी से जुड़ा फैसला छिपा होता है।” कई बार ऐसे जटिल मामलों में, जहाँ रोग की पहचान शुरुआती चरण में हो जाती है, वहाँ डॉ. जैन की सलाह से जीवनरक्षा संभव हो पाई है। उन्होंने रेडियोलॉजी को सिर्फ शरीर की स्कैनिंग तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ एक सेवा का माध्यम बनाया।
मरीज की आंखों में विश्वास ही असली पुरस्कार
डॉ. जैन मानते हैं कि डॉक्टर और मरीज के बीच सिर्फ दवा और जांच का रिश्ता नहीं होना चाहिए, बल्कि भरोसे और आत्मीयता का बंधन भी होना चाहिए। वे बताते हैं कि कई बार ऐसे पल आते हैं जब मरीज की आंखें डरी होती हैं, पर रिपोर्ट सही आने पर वही आंखें विश्वास और आभार से भर जाती हैं।
“एक मां जब मुझे कहती है कि आपने मेरे बच्चे की जान बचा ली, तो वो पल मेरी वर्षों की पढ़ाई, अनुभव और मेहनत का सबसे बड़ा सम्मान होता है,” – यह कहते समय उनकी आवाज भीग जाती है। यही वह भावनात्मक जुड़ाव है जिसने उन्हें डॉक्टर नहीं, बल्कि सच्चा ‘जीवन रक्षक’ बना दिया है।
डॉ. विपिन जैन का जीवन यह दर्शाता है कि यदि संकल्प, सेवा और समर्पण साथ हों, तो किसी भी क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए जा सकते हैं। वे आज भी हर दिन अपने उसी लक्ष्य पर अडिग हैं – “स्वास्थ्य के ज़रिए सेवा”।
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