हिंदू कैलेंडर के हिसाब से पूरे साल कुल 24 एकादशियों का आगमन होता है. इनका आगमन मानव कल्याण के लिए शुभ है. साल की अलग-अलग तिथियों में पड़ने वाली इन सभी 24 एकादशियों का अपना महत्त्व है.. आषाढ़ मास से चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है, जिसमें आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन मास होते हैं. चातुर्मास भगवान शिव को समर्पित है, जिसमें उनकी पूजा, पाठ, आराधना और स्तोत्र आदि से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हरिशयनी एकादशी का आगमन होता है. इस दिन से हरि प्रबोधिनी (देव उठनी) एकादशी तक हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है.
चार महीने की छुट्टी पर भगवान
कि आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष में हरिशयनी एकादशी आती है. इस दिन विष्णु भगवान क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं. सभी देव भी सो जाते हैं. विष्णु भगवान हरिशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक क्षीर सागर में आराम करते हैं और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की हरि प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहते हैं, को नींद से जाग जाते हैं. इन चार महीना तक पूरी सृष्टि का संचालन भोलेनाथ करते हैं.
ये सारे काम वर्जित
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की देव उठनी एकादशी तक सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह संस्कार, पाणिग्रहण संस्कार, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार आदि सभी करने वर्जित हैं. यदि इन चार महीनों में शादी विवाह, गृह प्रवेश, भूमि खरीदना, बेचना, मुंडन संस्कार आदि किए जाते हैं, तो व्यक्ति को दोष लगता है जिसका उपाय करने के बाद भी निवारण नहीं होता है.
चातुर्मास के 4 महीने पूजा पाठ, पूजा अर्चना, आराधना, भक्ति आदि करने के लिए बेहद ही खास बताए गए हैं. इन चार महीनों में पूजा पाठ करने पर भक्तों को संपूर्ण से अधिक फल की प्राप्ति होती है. साल 2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई, रविवार को होगी.