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    करवाचौथ पर कैसे हुई सरगी की शुरूआत, इसको खाने के क्या होते है नियम

    धर्म,  करवाचौथ का व्रत सभी सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिये करती हैं. इस दिन कई राज्यों में सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सरगी देने की परंपरा होती है. ये परंपरा आदिकाल से चलती आ रही है. करवाचौथ पर सरगी की परंपरा और इसके नियम बहुत ही खास और भावनात्मक होते हैं. यह न सिर्फ एक व्रत की शुरुआत होती है, बल्कि सास के आशीर्वाद और प्यार का प्रतीक भी है.
    सरगी की परंपरा कैसे शुरू हुई?

    सरगी की परंपरा दो प्रमुख पौराणिक कथाओं से जुड़ी है:

    1. माता पार्वती की कथा
    जब माता पार्वती ने पहली बार करवाचौथ का व्रत रखा था, उनकी सास नहीं थीं. ऐसे में उनकी मां मैना देवी ने उन्हें सरगी दी थी. तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि अगर सास न हो, तो मां भी सरगी दे सकती है.

    2. महाभारत काल की कथा
    जब द्रौपदी ने पांडवों की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा, तो उनकी सास कुंती ने उन्हें सरगी दी थी. इससे यह परंपरा ससुराल पक्ष से भी जुड़ गई.
    सरगी खाने के नियम और सही समय
    सरगी खाने का समय:

        ब्रह्म मुहूर्त में यानी सूर्योदय से पहले, लगभग सुबह 4:00 से 5:30 बजे के बीच सरगी खाई जाती है.
        सूरज निकलने के बाद सरगी खाना व्रत के नियमों के विरुद्ध माना जाता है.

    सरगी में क्या-क्या होता है?

    सरगी की थाली में शामिल होती हैं.

        फल: सेब, केला, अनार, पपीता आदि
        सूखे मेवे: बादाम, काजू, किशमिश
        मिठाई: हलवा, खीर या सेवई
        नारियल पानी या दूध
        सात्विक भोजन: मठरी, पराठा (बिना मसाले)
        श्रृंगार का सामान: बिंदी, चूड़ी, सिंदूर, साड़ी आदि

    क्या न खाएं सरगी में?

        तेल और मसालेदार चीजें
        भारी भोजन जो व्रत में परेशानी पैदा कर सकता है

    सरगी का भावनात्मक महत्व
    सरगी सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि सास का आशीर्वाद, प्यार, और स्नेह होता है. यह बहू को व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है.

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