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    छिंदवाड़ा के गांव में लंकापति ही भगवान! 10 दिन आराधना करते हैं आदिवासी, नहीं होता रावण दहन

    छिंदवाड़ा: नवरात्रि के पर्व में हर गांव में पंडाल सजे हैं. माता दुर्गा की आराधना हो रही है. लेकिन छिंदवाड़ा में एक गांव जमुनिया ऐसा है जहां पर 10 दिनों तक माता की आराधना नहीं बल्कि रावण की पूजा की जा रही है. यहां के लोग रावण को अपना अराध्य मानते हैं. और फिर रावण का विसर्जन भी किया जाता है.

    पूर्वज मानकर रावण देव की करते हैं पूजा
    जमुनिया गांव में पंडाल सजा है और रावण की स्थापना हुई है. यह आयोजन कई सालों से लगातार हो रहा है. आदिवासी समाज के लोग रावण को अपना पूर्वज मानकर 10 दिन पूजा करते हैं और फिर विसर्जन किया जाता है. आदिवासी युवा सुमित सल्लाम ने बताया कि, ''रावण उनके पूर्वज थे और पूर्वजों की पूजा करना उनका धर्म है. इसलिए उनके गांव में रावण की मूर्ति स्थापित की जाती है.''

    कई गांव में हो रही पूजा, आरती नहीं, होती है सुमरिनी
    जमुनिया के आदिवासी युवा वीरेंद्र सल्लाम ने बताया, ''सिर्फ जमुनिया ही नहीं बल्कि मेघासिवनी और दूसरे आदिवासी गांव में भी रावण की पूजा की जाती है. हालांकि उनकी पूजा फोटो रखकर की जाती है. खास बात ये होती है कि हर पूजा और पंडाल में दोनों टाइम आरती की जाती है लेकिन आदिवासी परंपरा के अनुसार रावण के पंडाल में सुमरनी का कही जाती है.''

    20 सालों से हो रही स्थापना
    दशहरा के दिन पूरे देश में बुराई का प्रतीक मानकर रावण का पुतला जलाया जाता है. लेकिन जमुनिया एक ऐसा गांव है जहां पिछले 20 सालों से रावण दहन के दिन विधि विधान से रावण का विसर्जन किया जाता है. इस गांव में दो रावण की मूर्तियों की स्थापना और गांव के लोग आदिवासियों का साथ देते हुए रावण दहन नहीं करते.

    रावण थे प्रकृति के पुजारी, पूर्वज मानकर दो दशकों से स्थापना
    आदिवासियों का कहना है कि, वो रामायण वाले रावण की नहीं, बल्कि अपने पूर्वज के तौर पर रावण की पूजा करते हैं. उनका ये भी मानना है कि, भगवान शिव के भक्त के तौर पर भी रावण उनके लिए पूजनीय हैं. उन्होंने बताया कि, वे सभी धर्म का सम्मान करते हैं. यहां मां दुर्गा के पंडाल में उनकी पूजा हो जाने के बाद ही अपने पूर्वज के तौर पर रावण की पूजा करते हैं.

    आदिवासियों ने बताया कि, उनके पूर्वज 20 सालों से रावण की पूजा करते चले आ रहे हैं, वे भी अपनी ये परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. आदिवासी प्रकृति के पुजारी है इसलिए जल, जंगल और जमीन की पूजा करते हैं. प्रकृति के देवता भगवान से शिव भी कहलाते हैं और भगवान शिव के भक्त रावण भी थे.

     

    आदिवासी क्यों अपना पूर्वज मानते हैं रावण को
    आदिवासी समुदाय रावण को अपना पूर्वज मानते हैं, क्योंकि वे उन्हें एक महान राजा, योद्धा और आदिवासी महापुरुष मानते हैं. वे रामायण के रावण से अलग रावण पेन या रावण गोंड जैसे अन्य रूप में भी उनकी पूजा करते हैं, जिन्हें वे शिव का परम भक्त मानते हैं.

    गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के जिला अध्यक्ष देवरावेन भलावी ने बताया कि, ''रावण कोयावंशी थे और उनकी माता जंगल में निवास करती थी. उनका जन्म भी एक गुफा में हुआ था. रावनपेन का जन्म आदिवासी समुदाय में हुआ था. इस लिहाज से वे आदिवासी समुदाय के पूर्वज हैं. दशहरा के दिन रावण दहन करने से उनकी भावनाएं हाथ होती है इसलिए वे इसका विरोध भी करते हैं.''

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