राजकीय मेडिकल कॉलेज करौली की सहायक प्रोफेसर डॉ. साक्षी जैन की कहानी, जिन्होंने सेवा, समर्पण और दृष्टिकोण से नई पहचान बनाई।
मिशनसच न्यूज, अलवर ।
डॉ. साक्षी जैन : एक युवा डॉक्टर की चिंता भविष्य के ऐसे युवाओं को लेकर अधिक है जो यह मानते है कि एमबीबीएस में प्रवेश ले लो फिर जिंदगी मजे में है। वे कहती है कि वर्तमान परिस्थितियों में यह भूल जाना चाहिए कि एमबीबीएस की डिग्री ही डॉक्टर बना देती है। उनके अनुसार, “जैसे बीएड की डिग्री शिक्षण का प्रवेश द्वार है, वैसे ही एमबीबीएस केवल एक शुरुआत है। डॉक्टर वही बनता है जो इस डिग्री के बाद भी खुद को लगातार सीखने, समझने और समाज के लिए समर्पित रखने को तैयार रखे।” उनकी चिंता उन छात्रों को लेकर है जो केवल डिग्री को ही मंज़िल समझ बैठते हैं। वे कहती हैं, “मेडिकल में दाखिला मिलना जीत नहीं, वो तो युद्ध की शुरुआत है।”
शिक्षा की जड़ें: हिंदी माध्यम से मेडिकल तक
साक्षी जैन का प्रारंभिक जीवन राजस्थान के अलवर शहर में बीता। शुरुआती पढ़ाई आदर्श विद्या मंदिर और बाल भारती स्कूल में हुई, और विशेष बात यह रही कि उन्होंने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई हिंदी माध्यम से की। यह तथ्य उन सभी विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक है जो सोचते हैं कि हिंदी माध्यम से आगे बढ़ना कठिन होता है। साक्षी की कहानी बताती है कि भाषा कभी भी प्रतिभा की बाधा नहीं बन सकती।
दसवीं के बाद उन्होंने कोटा जाकर कोचिंग की और संकल्प लिया कि डॉक्टर ही बनना है। 2013 में पीएमटी में चयन हुआ और उन्हें झालावाड़ मेडिकल कॉलेज मिला। यहीं से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और फिर एसएमएस हॉस्पिटल, जयपुर से इंटर्नशिप की। मार्च में इंटर्नशिप पूरी होने के बाद वे दिल्ली चली गईं और वहां नौ महीने की कठिन पढ़ाई के बाद उन्हें एमएस नेत्र विज्ञान (Ophthalmology) में प्रवेश मिला। पढ़ाई पूरी कर वे अलवर के ESIC मेडिकल कॉलेज में कार्यरत रहीं और वहीं से सहायक प्रोफेसर बनने की तैयारी की। सफलता ने साथ दिया और आज वे राजकीय मेडिकल कॉलेज, करौली में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
डॉक्टर क्यों बनीं – सम्मान की वह प्रेरणा
बचपन में जब साक्षी समाज में डॉक्टरों को विशेष आदर और सम्मान की दृष्टि से देखती थीं, तो उनके मन में यह भावना जन्मी कि ऐसा पेशा अपनाया जाए जहाँ सेवा के साथ-साथ समाज में भी गरिमा बनी रहे। धीरे-धीरे यह भावना संकल्प में बदल गई और दसवीं तक आते-आते उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें डॉक्टर ही बनना है। कोचिंग, तैयारी और परीक्षा – हर कदम पर उन्होंने एकाग्रता और अनुशासन को जीवन का हिस्सा बना लिया।
जब सफलता पर निकले आंसू
यह एक ऐसी सफलता थी जब पेशेंट के खुशी के आंसूओ के सामने अस्पताल में खड़े अन्य लोगों का भी मन भर आया था। साक्षी बताती है कि एक महिला मरीज की दोनों आंखों में मोतियाबिंद था। उसकी शूगर लेवल भी अधिक था। इस कारण सभी एतियात बरतते हुए उसका ऑपरेशन करना था। दो तीन दिन में शूगर कंट्रोल करने के बाद जब ऑपरेशन से पहले उसे लिटाया तो मरीज को काफी बातें समझाई गई। उसने सब कुछ सुनने के बाद कहा मैडम देख लेना मैंने आठ नौ माह से अपने पति व बच्चों को देखा तक नहीं है। उसका ऑपरेशन सफल रहा। दूसरे दिन जब उसकी पट्टी खोली तो उसके सामने पति व उसके बच्चे को लाया गया तो वह खुशी से रोने लगी। जिससे एक बार तो माहौल गमगीन सा हो गया। पर वह सफलता मेरे मन में आज भी है।
भविष्य की उड़ान – नेत्र विज्ञान में विशेषज्ञता
डॉ. साक्षी का सपना यहीं समाप्त नहीं होता। वे नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में उच्चतम विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहती हैं, विशेषकर ऑक्यूलो प्लास्टी जैसी जटिल विधाओं में दक्षता हासिल करना उनका लक्ष्य है। वे फेलोशिप के लिए भी प्रयासरत हैं ताकि वे न केवल उपचार करें बल्कि नई पीढ़ी को श्रेष्ठ नेत्र चिकित्सा सिखा सकें।
व्यक्तिगत जीवन – परिवार और संतुलन
साक्षी का पारिवारिक जीवन भी उतना ही सधा हुआ और प्रेरक है। वे अलवर के मालवीय नगर निवासी पवन जैन और अल्का जैन की सुपुत्री हैं। उनका विवाह गुरुवचन जैन से हुआ जो कि सॉफ्टवेयर डेवेलपर हैं। पारिवारिक सहयोग और संबल ने उन्हें हमेशा प्रेरणा दी और यही संतुलन उन्हें प्रोफेशनल और व्यक्तिगत जीवन में आगे बढ़ाता रहा।
“डिग्री नहीं, दृष्टिकोण” ही डॉक्टर को महान बनाता है
डॉ. साक्षी जैन उन युवा डॉक्टरों में से हैं जिन्होंने न केवल खुद को बेहतर चिकित्सक बनाया बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि “डिग्री नहीं, दृष्टिकोण” ही डॉक्टर को महान बनाता है। करुणा, समर्पण और सतत अध्ययन को अपना मूलमंत्र मानने वाली साक्षी, एक ऐसी प्रेरणा हैं जिनकी दृष्टि में न केवल आँखें ठीक करने की शक्ति है, बल्कि समाज को एक नई दृष्टि देने की क्षमता भी है।