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    ‘धड़क 2’ का क्लाइमैक्स हिला देगा, सिद्धांत ने किया बड़ा खुलासा; बताया किसे मानते हैं गॉडफादर

    मुंबई : ‘गली बॉय’ और ‘गहराइयां’ जैसी फिल्मों में नजर आए अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी अब अपनी अगली फिल्म ‘धड़क 2’ के साथ दर्शकों के सामने आने वाले हैं। अमर उजाला से खास बातचीत में उन्होंने फिल्म और अपने किरदार को लेकर दिल से बातें कीं। बातचीत के दौरान सिद्धांत ने जात-पात जैसे सामाजिक मुद्दे पर एक ऐसा अनुभव साझा किया, जो चौंकाता है। वहीं, जब उनसे 'गॉडफादर' को लेकर सवाल हुआ, तो उन्होंने ऐसा जवाब दिया जो सीधे दिल को छूता है।

    ‘ये आत्मा से जुड़ी कहानी है, नाम का सीक्वल नहीं’

    मैं इस फिल्म को एक आत्मिक सीक्वल मानता हूं। आत्मा वही है, लेकिन शरीर, जगह और हालात बिल्कुल अलग हैं। पहली ‘धड़क’ में कॉलेज वाला मासूम प्यार था, लेकिन इस बार की कहानी ज्यादा गहरी और सच्ची है। ऐसा प्यार है, जो सिर्फ देखा या कहा नहीं जाता, उसे जीकर ही समझा जा सकता है। इस फिल्म में आप ज्यादा खामोशी पाएंगे और वही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।

    ‘जो चुप रहता है, वो कमजोर नहीं होता’

    इस बार जो किरदार मैं निभा रहा हूं, वह बहुत कुछ सहता है, लेकिन ज्यादा बोलता नहीं। आजकल लोग सोचते हैं कि जो चुप है वह दबा हुआ है, लेकिन मैं मानता हूं कि चुप रहना भी एक ताकत होती है। हर बात का जवाब देना जरूरी नहीं। कई बार चुपचाप सह जाना ही सबसे बड़ा जवाब होता है।

    ‘जात-पात का असर पहली बार महसूस किया’

    मैं ब्राह्मण परिवार से हूं। मेरे दादाजी बलिया में पंडित थे। लेकिन मेरे पापा की सोच हमेशा बहुत खुली रही। बचपन में मैंने कभी भेदभाव महसूस नहीं किया। लेकिन इस फिल्म में एक सीन था, जिसमें एक आदमी सिर्फ इसलिए जमीन पर बैठ गया, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया गया था कि वो छोटा है। उस सीन ने मुझे अंदर से झकझोर दिया। तब समझ में आया कि ये जख्म अब भी जिंदा हैं।

    ‘किरदार को सिर्फ निभाना नहीं, जीना पड़ता है’

    चेहरा तो मेकअप से बदल जाता है, लेकिन किरदार की सोच को अपनाना सबसे मुश्किल होता है। मैं डायरेक्टर की हर बात ध्यान से सुनता हूं, स्क्रिप्ट को सिर्फ पढ़ता नहीं; महसूस करता हूं। फिर अपने अनुभवों से उसमें जान डालता हूं। तभी जाकर किरदार सच्चा लगता है।

    ‘एक सीन था, जिसमें हम सच में टूट गए’

    एक सीन था, जिसमें विपिन शर्मा सर मेरे पापा का रोल कर रहे थे। सीन इतना असली लग रहा था कि कट होने के बाद भी हम दोनों (मैं और त्रिप्ती डिमरी) रोते रहे। हम करीब आधे घंटे तक चुपचाप एक-दूसरे को पकड़कर बैठे रहे। वो पल हमारे लिए एक्टिंग नहीं, सच्चाई बन गया था।

    ‘फिल्म का क्लाइमैक्स लोगों को हिला देगा’

    जब लोग फिल्म का अंत देखेंगे, तो चौंक जाएंगे। ये वो क्लाइमैक्स नहीं है जिसकी आमतौर पर उम्मीद की जाती है। मुझे लगता है थिएटर में कुछ देर के लिए सब शांत हो जाएंगे। क्योंकि तब समझ में आएगा कि ये सिर्फ दो लोगों की नहीं, पूरे समाज की कहानी है।

    ‘कुछ आंसू होते हैं जो बाहर नहीं आते’

    इस फिल्म को करते हुए कई बार लगा कि अगर मैं उस किरदार की जगह होता, तो शायद इतना सह नहीं पाता। लेकिन जब आप किसी को जीते हो, तो उसका दर्द समझ में आता है। कुछ आंसू ऐसे होते हैं जो आंखों से नहीं गिरते, लेकिन मन के अंदर बहुत कुछ बह जाता है।

    ‘मेरे पापा ही मेरे गॉडफादर हैं’

    जब भी लोग पूछते हैं कि मेरा गॉडफादर कौन है, तो मैं साफ कहता हूं कि मेरे पापा। वही मेरे सबसे बड़े सपोर्टर हैं और सबसे सच्चे क्रिटिक भी। मैंने उनसे ही सबसे ज्यादा सीखा है। मेरे लिए मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे पिता हैं। वो बलिया जैसे छोटे शहर से मुंबई आए, मेहनत की और हमें पाल-पोसकर बड़ा किया। उन्होंने हमेशा समाज की परवाह किए बिना मुझे वही करने दिया जो मेरा दिल चाहता था। मुझे लगता है कि किसी पिता का अपने बेटे में ऐसा भरोसा रखना ही सबसे बड़ी बात होती है। अगर मैं उन्हें और मम्मी को वो सब दे सकूं, जिसके वो हकदार हैं, तो वही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।

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