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    निजीकरण के मसौदे पर सलाह देने को बाध्य नहीं आयोग, संघर्ष समिति ने कहा बनाया जा रहा दबाव

    राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि बिजली कंपनियों के निजीकरण के मसौदे पर विद्युत नियामक आयोग एक दो दिनों में राज्य सरकार को अपनी सलाह दे सकता है। 

    निजीकरण के इस मसौदे को देश का कोई भी नियामक पास करने की सलाह नहीं दे सकता है. क्योंकि इसमें कई कमियां हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के हवाले से कहा है कि नियामक आयोग राज्य अथवा केंद्र सरकार के किसी फैसले मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।

    उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग में एक वाद दायर किया। जिसमें उन्होंने लिखा है कि राज्य विद्युत नियामक आयोग राज्य अथवा केंद्र सरकार के किसी निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं है। 

    केरला स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम झाबुआ पावर लि. के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि विद्युत अधिनियम-2003 की धारा 108 के तहत राज्य विद्युत नियामक आयोग राज्य अथवा केंद्र सरकार के निर्देशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। 

    प्रदेश सरकार का ऊर्जा विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए इस मामले में आयोग से अभिमत मांगा है। यदि विद्युत नियामक आयोग निजीकरण के मसौदे पर कोई भी सलाह देता है तो यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत होगा। दायर वाद के साथ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की प्रति भी लगाई है।

    उधर, विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा है कि निजीकरण के मसौदे पर अभिमत दिए जाने के लिए उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग पर पावर कारपोरेशन प्रबंधन और निजी घरानों का दबाव है। 

    संघर्ष समिति ने नियामक आयोग पर बनाए जा रहे दबाव के विरोध में गुरुवार को आयोग के मुख्यद्वार पर मौन प्रदर्शन किया।

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