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    पाण्डवों ने की थी मां बगलामुखी की उपासना, नलखेड़ा में माता का प्रसिद्ध मंदिर

    आगर मालवा: देशभर में मातारानी के आगमन की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है. 22 सितंबर यानि सोमवार से शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो रही है. इस बार माता हाथी पर सवार होकर आ रही हैं. नवरात्रि के पावन पर्व को लेकर जगह-जगह पंडाल सजाए गए हैं, वहीं मंदिरों में भी तैयारियां चल रही है. इसी क्रम में आगर मालवा के एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको बताएंगे, जहां महाभारत काल में पाण्डवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था. यह मंदिर मां बगलामुखी के नाम से प्रसिद्ध है.

    विश्व में तीन स्थानों पर विराजित मां बगलामुखी

    आगर मालवा जिला मुख्‍यालय से 35 किलोमीटर दूर नलखेड़ा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में मां बगलामुखी विराजमान हैं. सभी कामों की सिद्धि दात्री मां बगलामुखी जिनके एक और धन दायिनी महालक्ष्मी और दूसरी और विद्या दायिनी महा सरस्वती विराजित हैं. मां बगलामुखी की प्रतिमा विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है. एक नेपाल, दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया और तीसरी नलखेडा में. कहा जाता है की नेपाल और दतिया में आद्या शंकराचार्य द्वारा मां की प्रतिमा स्थापित की गयी थी.

    नलखेड़ा में शाश्वत काल से विराजित मां बगलामुखी

    जबकि नलखेड़ा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बरा रूप में शाश्वत काल से विराजित हैं. प्राचीन काल में यहां बगावत नाम का गांव हुआ करता था. यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि मां बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और मां हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती है. सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तो का मां के दरबार में हाजरी लगाना और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का सिलसिला शुरू हो जाता है.

    पांडवों ने की थी मां बगलामुखी की उपासना

    मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी प्रतिमा की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है. किवंदिती है कि यह प्रतिमा स्वयं सिद्ध स्थापित है. काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब 5 हजार साल से भी पहले से स्थापित है. कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था. तब मां की प्रतिमा एक चबूतरे पर विराजित थी. पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पायी थी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया था. यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है, जहा कोई छोटा बड़ा नहीं है.

    देवीय शक्ति होने का प्रमाण

    बगलामुखी के इस मंदिर के आस पास की संरचना देवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाणित करती है. मंदिर के उत्तर दिशा में भैरव महाराज का स्थान है. पूर्व में हनुमानजी की प्रतिमा है. हनुमान जी के पीछे चंपा नीम और बिल्व पत्र के पेड़ हैं. दक्षिण दिशा में राधा कृष्ण का प्राचीन मंदिर है. मंदिर परिसर में हवन कुण्ड है. जिसमें आम और खास सभी भक्त अपनी आहुति देते हैं.

    नवरात्रि के दौरान हवन की क्रियाओं को संपन्न कराने का विशेष महत्व है. अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किये जाने वाले इस हवन में तिल, जौ, घी, नारियल आदि का होम किया जाता है. कहते हैं माता के सामने हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते हैं. मां बगलामुखी के इस मंदिर के ठीक सामने 80 फीट ऊंची दीपमाला है. पीत यानि पीला इसलिए यहां पीले रंग की सामग्री चढ़ाई जाती है.

     

    नवरात्रि में मंदिर में होती है श्रद्धालुओं का तांता

    मां के इस मंदिर में साल भर भक्‍तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में लाखों भक्त मां के दर्शन करने के लिये देश-विदेश से भक्त मंदिर में परिवार सहित व कई दिग्‍गज नेताओं का आना-जाना लगा रहता है, कई अभिनेता व अभिनेत्रियां भी मां के दरबार में माथा टेक चुकी हैं. मां के मंदिर में हवन करने से शत्रुओं पर विजयी प्राप्‍त होती है. नवरात्रि में मां बगलामुखी मंदिर में 9 दिनों तक भंडारे का भी आयोजन किया जाता है. भंडारें में हर दिन हजारों भक्तों के लिये भोजन प्रसादी बनाई जाती है और सभी भक्त भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं.

     

     

       

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