मुंबई। क्या मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने तथाकथित ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ के लिए अन्नदाताओं की आजीविका का साधन कृषि भूमि को साम-दाम-दंड-भेद का उपयोग कर छीनने और उन्हें हमेशा के लिए विस्थापित करने का पैâसला किया है? मुंबई में ‘धारावी’ परियोजना के नाम पर अडानी को पूरी मुंबई में जमीन के खास भूखंड दिए जा रहे हैं और ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर किसानों की खेती योग्य जमीनों को निगला जा रहा है। फडणवीस वैâबिनेट ने शक्तिपीठ राजमार्ग को पुनर्जीवित करके हजारों किसानों की जिंदगी जोखिम में डाल दी है। मंगलवार को हुई वैâबिनेट की बैठक में इस राजमार्ग के लिए भूमि अधिग्रहण को दी गई मंजूरी और इसके लिए २०,००० करोड़ रुपए का प्रावधान का मतलब यही है। विधानसभा चुनाव से पहले, महायुति सरकार शक्तिपीठ राजमार्ग के किसानों के विरोध के आगे झुक गई थी। उन्होंने इस परियोजना को रद्द करने की घोषणा की थी। लेकिन बाद में वोटों की हेराफेरी और चोरी-चपाटी के जरिए राज्य में पूर्ण सत्ता हासिल करने के बाद फडणवीस की आसुरी महत्वाकांक्षाएं फिर से भड़क उठी हैं। इस सरकार ने पहले किसानों की कर्जमाफी के नाम पर किसानों के साथ धोखा किया और अब रद्द की गई शक्तिपीठ हाईवे के लिए भूमि अधिग्रहण का रास्ता साफ कर किसानों
के जख्मों पर नमक
डाल रही है। क्या कहें, यह भी मुख्यमंत्री का ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’ है और उन्हें इसे पूरा भी करना है। इसके लिए किसानों और उनकी आनेवाली पीढ़ियां भले ही विस्थापित हो जाएं, लेकिन ‘समृद्धि’ की तरह ‘शक्तिपीठ’ हाईवे पर भी मुख्यमंत्री का नाम चमकना चाहिए! यह सही है कि विकास का रास्ता ‘सड़कों’ से होकर जाता है, लेकिन अगर ये सड़कें कृषि भूमि पर बुलडोजर बन जाएं तो विकास वैâसे हो सकता है? अन्नदाताओं की कब्रें उनके ही खेतों में बनानेवाले मार्ग से राज्य का क्या भला होगा? शक्तिपीठ हाईवे से भी भ्रष्ट ठेकेदारों और सरकार में बैठे उनके संरक्षकों को ही लाभ होगा। जब पहले से ही समानांतर फोर लेन हाईवे मौजूद है, तो सरकार जबरन नागपुर से गोवा तक शक्तिपीठ हाईवे क्यों बनवा रही है? फडणवीस सरकार की इस राक्षसी महत्वाकांक्षा के लिए हजारों किसान, उनकी उपजाऊ और खेती की जमीनें नष्ट हो जाएंगी, साथ ही इससे पश्चिमी घाट की संवेदनशील जैव विविधता भी खतरे में पड़ जाएगी। यह राजमार्ग सोलापुर के पास नेहरू मालढोक अभयारण्य के अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा करेगा, जो लुप्तप्राय पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है। आपके कहे अनुसार यह राजमार्ग ‘ग्रीनफील्ड’ आदि होगा, लेकिन इसके लिए ७,५०० हेक्टेयर
हरे-भरे खेत उजाड़
होने जा रहे हैं। महाराष्ट्र में पहले से ही साढ़े तीन लाख हेक्टेयर कृषि भूमि का उपयोग गैर-कृषि कार्यों के लिए किया जा रहा है। इसमें शक्तिपीठ हाईवे के लिए साढ़े सात हजार हेक्टेयर और जुड़ जाएंगे। राज्य के १२ जिलों और ३९ तालुकाओं की हजारों हेक्टेयर उपजाऊ कृषि भूमि और उस पर पलनेवाले हजारों किसान परिवार ‘बर्बाद’ हो जाएंगे और आप उस पर ‘तेज विकास’ करने का ढोल पीटेंगे। सड़कों और राजमार्गों के निर्माण पर आपत्ति करने का कोई कारण नहीं है, लेकिन क्या ‘शक्तिपीठ हाईवे’ आज महाराष्ट्र की तत्काल जरूरत है? सरकार का खजाना ठन-ठन गोपाल बन गया है। हुक्मरानों पर ‘लाडली बहन’ जैसी ‘भारी बोझ’ वाली योजनाओं के लिए अन्य महकमों की निधि पर हाथ मारने की नौबत आ पहुंची है। तो सरकार किस आधार पर इस राजमार्ग के मुआवजे के लिए किसानों को २०,००० करोड़ रुपए का ‘प्रलोभन’ दिखा रही है? क्या यह ‘फडणवीसी’ चाल है कि इन पैसों में से कुछ पैसों का दुरुपयोग आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में किया जाए? समृद्धि महामार्ग आपका पिछला ड्रीम प्रोजेक्ट है! यह नया-नवेला हाईवे इस समय गड्ढों से समृद्ध है। इस पाप का प्रायश्चित करने के बजाय आप हजारों किसानों और उनकी उपजाऊ भूमि के जीवन को बर्बाद करनेवाले एक और ड्रीम प्रोजेक्ट शक्तिपीठ महामार्ग का पाप क्यों कर रहे हैं? याद रखें कि महाराष्ट्र के आराध्य देवता ये ‘शक्तिपीठ’ आपको माफ नहीं करेंगे!