द्रौपदी के वो 3 अवगुण, जो खुद युधिष्ठिर ने बताए थे, जिस वजह से पूरी नहीं कर पाईं स्वर्ग की यात्रा

महाभारत सिर्फ एक युद्ध या राजघरानों की राजनीति की कहानी नहीं है, बल्कि ये मानवीय गुणों, दोषों और उनके परिणामों की भी गहरी सीख देती है. इस महाकाव्य में जितनी चर्चा अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, दुर्योधन जैसे वीरों की होती है, उतनी ही चर्चा द्रौपदी की भी होती है. द्रौपदी को महाभारत की सबसे अहम महिला पात्रों में गिना जाता है. वो बेहद सुंदर, चतुर और हाजिरजवाब थीं. उनके साहस और आत्मसम्मान की मिसालें आज भी दी जाती हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इन तमाम खूबियों के बावजूद द्रौपदी में कुछ ऐसे अवगुण भी थे जो उनकी सबसे बड़ी कमियां बन गए? महाभारत के एक प्रसंग में खुद युधिष्ठिर ने इन तीन अवगुणों का जिक्र अपने भाइयों से किया था. उन्होंने ये सब तब बताया जब पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ स्वर्ग जाने के लिए कठिन यात्रा पर निकले थे. आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से.
युधिष्ठिर ने कब बताए द्रौपदी के दोष
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने हस्तिनापुर का राज्य छोड़ दिया, तब उन्होंने अपने शरीर के साथ ही स्वर्ग जाने का निश्चय किया. वे सभी भाई और द्रौपदी हिमालय की ओर चल पड़े. इस यात्रा को स्वर्गारोहण कहा गया. यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी इस यात्रा में पीछे छूट गईं. बद्रीनाथ के आस-पास का कठिन इलाका पार करते ही द्रौपदी थककर गिर पड़ी और फिर दोबारा नहीं उठ सकीं. तब उनके पति युधिष्ठिर ने बाकी भाइयों को बताया कि आखिर द्रौपदी स्वर्ग की यह कठिन यात्रा क्यों पूरी नहीं कर पाईं

द्रौपदी का पहला अवगुण- सौंदर्य और बुद्धि का अहंकार
युधिष्ठिर ने सबसे पहले कहा कि द्रौपदी को अपने सौंदर्य और बुद्धिमत्ता का घमंड था. उन्हें लगता था कि वे सबसे सुंदर और चतुर हैं. किसी भी चीज का अहंकार इंसान को गिरा देता है. चाहे रूप हो, विद्या हो या धन, अगर उस पर घमंड किया जाए तो वही सबसे बड़ा दुर्गुण बन जाता है. द्रौपदी के इसी घमंड ने उनके स्वर्गारोहण में बाधा डाली.

दूसरा अवगुण- सभी पतियों से समान प्रेम न करना
द्रौपदी के पांच पति थे. वे सभी पांडव उनके जीवन में समान रूप से महत्वपूर्ण थे. लेकिन युधिष्ठिर ने बताया कि द्रौपदी ने अपने सभी पतियों से बराबर प्रेम नहीं किया. उन्हें अर्जुन सबसे ज्यादा प्रिय थे. युधिष्ठिर ने साफ कहा कि किसी एक की ओर विशेष झुकाव होना और बाकी के साथ समान व्यवहार न करना भी एक दोष है. यही असमानता उनकी परीक्षा में कमी बन गई.

तीसरा अवगुण- उनका हठ
युधिष्ठिर ने द्रौपदी का तीसरा दोष उनका हठी स्वभाव बताया. द्रौपदी ने दुर्योधन के अपमान के बाद बदला लेने की ठान ली थी. उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुर्योधन की जांघ पर चोट नहीं पड़ेगी, तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगी. इसी प्रतिज्ञा और हठ ने महाभारत के महासंग्राम को जन्म दिया, जिसमें लाखों योद्धा मारे गए. उनका यह हठ न केवल उनके लिए बल्कि पूरी पृथ्वी के लिए विनाशकारी साबित हुआ.

इस कथा से क्या सीख मिलती है?
महाभारत की इस घटना से यह साफ होता है कि इंसान कितना भी बुद्धिमान, शक्तिशाली या सुंदर क्यों न हो, अगर उसके भीतर अहंकार, पक्षपात और हठ जैसे अवगुण हैं तो वो जीवन की सबसे अहम यात्राओं को भी पूरा नहीं कर पाता. द्रौपदी के इन तीन अवगुणों ने उन्हें स्वर्ग की यात्रा बीच में ही रोक दी.

इसलिए हमें अपने जीवन में हमेशा विनम्र, न्यायप्रिय और सहज रहना चाहिए. अगर हमें ईश्वर तक पहुंचना है या जीवन की ऊंचाइयों को छूना है, तो इन दुर्गुणों को अपने भीतर से निकालना जरूरी है. यही महाभारत की असली सीख है जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी.

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