चंडीगढ़|
“अपने आपको देखो, समझो, और गिराओ मत — आत्मबोध हो जाए तो समझो आध्यात्मिक उन्नति का द्वार खुल गया।”
यह प्रेरक वचन मनीषी संत मुनिश्री विनयकुमारजी आलोक ने आज अणुव्रत भवन, सेक्टर-24, चंडीगढ़ के तुलसी सभागार में उपस्थित श्रद्धालुजनों को संबोधित करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का जीवन सबसे बड़ा उपहार है। यह जीवन तभी सार्थक होता है जब हम इसकी मूल्यवत्ता को समझते हुए आत्मबोध की दिशा में अग्रसर हों।
“जीवन को कोई भार न समझें, यह ईश्वर की सौपी हुई अमूल्य धरोहर है। इसका सदुपयोग करना ही हमारा कर्तव्य है।”
आत्मबोध से खुलते हैं सफलता के द्वार
मुनिश्री ने कहा कि आत्मबोध ही वह आधार है, जिससे मनुष्य अपने भीतर छिपे गौरव, गरिमा, कर्तव्यता और आध्यात्मिक उन्नति को पहचान सकता है।
“अपने को जान लेना, देख लेना ही सबसे बड़ा ज्ञान है। जब तक हम अपनी महत्ता को नहीं समझते, तब तक जीवन का सदुपयोग संभव नहीं।”
जीवन का मूल्य समझना आवश्यक
उन्होंने आगे कहा कि अनेक लोग जीवन को एक बोझ मानकर जीते हैं, जबकि वास्तव में यह एक संपदा है, जिसे परमात्मा ने विश्व को सुंदर और समुन्नत बनाने की आकांक्षा के साथ सौंपा है।
“हमारे पास कीमती मस्तिष्क, शरीर और गुण हैं, यदि उनका सही उपयोग न किया जाए तो हीरा भी मिट्टी बन जाता है।”
मनुष्य जीवन: भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का द्वार
मुनिश्री ने अपने विचारों में दोहराया कि यदि मनुष्य अपनी सत्ता की महत्ता को समझे और आत्मबोध प्राप्त करे तो वह न केवल भौतिक सफलता बल्कि आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त कर सकता है।
📝 टिप्पणी:
इस प्रवचन में आधुनिक जीवन की व्यस्तताओं और मानसिक तनावों के बीच आत्मचिंतन और आत्मबोध का महत्व स्पष्ट होता है। यह संदेश वर्तमान पीढ़ी को जीवन के सही अर्थ और उद्देश्य को समझने की प्रेरणा देता है।