नागौर में आयोजित प्रेस वार्ता में किसानों ने बाजरा, गवार और मक्का जैसी फसलों पर घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) न मिलने पर गंभीर चिंता जताई। किसानों ने सरकार से तुरंत समाधान की मांग की।
राजस्थान में बाजरा और मोटे अनाज के किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं, किसान महापंचायत ने सरकार पर लगाया आरोप
मिशनसच न्यूज, मेड़ता-नागौर। किसान महापंचायत ने प्रेस वार्ता कर केंद्र और राज्य सरकार पर किसानों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाने का आरोप लगाया है। संगठन का कहना है कि जिन फसलों का ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)’ घोषित है, उनमें भी किसानों को वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा है।
बाजरा उत्पादन में देशभर में प्रथम, पर खरीद शून्य
किसान महापंचायत ने कहा कि राजस्थान बाजरा उत्पादन में देशभर में प्रथम स्थान पर है, साथ ही ग्वार और मक्का जैसी मोटे अनाज की उपज भी बड़े पैमाने पर यहां होती है। इसके बावजूद किसानों को प्रति क्विंटल अपनी उपज 3000 रुपए तक कम दामों पर बेचनी पड़ रही है।
नेताओं ने आरोप लगाया कि वर्ष 2009 से अब तक राजस्थान में बाजरे की एक भी दाने की सरकारी खरीद नहीं हुई है। इससे पहले 2004-05 और 2011-12 में नाममात्र की खरीद हुई थी। मूंग, चना, सरसों और मूंगफली जैसी दलहन-तिलहन की उपज में भी सरकार कुल उत्पादन का केवल 25% ही खरीदने का प्रयास करती है, वह भी बिना पारदर्शिता के।
आयोगों की अनुशंसाएं नजरअंदाज
प्रेस वार्ता में बताया गया कि 12 जुलाई 2022 को गठित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य संबंधी उपसमूह’ ने अनुशंसा की थी कि मंडियों में नीलामी की बोली MSP से शुरू होनी चाहिए। इसी तरह कृषि लागत एवं मूल्य आयोग भी कई बार MSP की कानूनी गारंटी की सिफारिश कर चुका है। डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ने भी इसी प्रकार की अनुशंसा की थी, लेकिन सरकारों ने इन्हें अब तक लागू नहीं किया।
फसल बीमा योजना पर सवाल
किसान नेताओं ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर भी सवाल उठाए। उनका कहना है कि प्राकृतिक आपदा से फसल खराब होने पर भी किसानों को बीमा भुगतान नहीं मिलता, जबकि उनके बैंक खातों से प्रीमियम स्वतः काट लिया जाता है। किसानों को न बीमा पॉलिसी दी जाती है और न ही रसीद।
उन्होंने कहा – “धन किसान का, तंत्र सरकार का और लाभ कंपनियों का” – यह लोकोक्ति इस योजना पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। बीमा कंपनियां भुगतान से बचने के लिए बहाने ढूंढती रहती हैं और सरकारों की बनाई मार्गदर्शिकाएं उनके पक्ष में काम करती हैं।
निर्यात फसलों के दामों में भारी गिरावट
किसान महापंचायत ने कहा कि राजस्थान में ग्वार, मौठ, इसबगोल, धनिया, जीरा और सौंफ जैसी फसलें भी बड़े पैमाने पर होती हैं। इनमें निर्यात की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन किसानों को उचित भाव नहीं मिल रहा।
जीरे का भाव 60 हजार से घटकर 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल रह गया।
सौंफ 16 हजार से घटकर 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई।
ग्वार का भाव 40 हजार से गिरकर 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल हो गया।
नेताओं का कहना है कि यह उतार-चढ़ाव भाग्य नहीं, बल्कि सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है।
कपास और नरमा पर भी चिंता
महापंचायत ने आरोप लगाया कि कपास और नरमा पर 10% आयात शुल्क हटाकर सरकार ने अमेरिका के लिए भारतीय बाजार खोल दिया है, जिससे देश के किसान घाटे में चले जाएंगे। इसे उन्होंने “कंगाली में आटा गीला” की स्थिति बताया।
किसानों की मांगें
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट, प्रदेश महामंत्री जगदीश नारायण और युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर चौधरी ने संयुक्त रूप से कहा कि –
एमएसपी को कानूनी गारंटी दी जाए।
सभी फसलों की सरकारी खरीद सुनिश्चित की जाए।
फसल बीमा योजना पारदर्शी हो और किसानों को समय पर भुगतान मिले।
सहकारी समितियों पर स्थायी खरीद केंद्र बनाए जाएं।
मंडियों से भागे व्यापारियों की जिम्मेदारी तय हो और किसानों को उनकी बकाया राशि का भुगतान मिले।