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    बड़ी उपलब्धि- प्रदेश को मिली ” जोधपुर जीरा-1 किस्म , भारत सरकार ने की अधिसूचना जारी।

    कृषि वैज्ञानिकों की सात सालों की कड़ी मेहनत का सुखद परिणाम

    सुखद :*कृषि विश्वविद्यालय ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ाया प्रदेश का मान, प्रतिरोधी किस्म किसानों के लिए बेहद फायदेमंद

    ममिशनसच न्यूज, जोधपुर। कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर में कृषि वैज्ञानिकों की सात सालों की कड़ी मेहनत का सुखद परिणाम प्रदेश को मिला है। दरअसल कृषि वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से विश्वविद्यालय की ओर से जीरे की “जोधपुर जीरा-1” किस्म विकसित की गई है। भारत सरकार की ओर से इसे आधिकारिक मंजूरी देकर गजट अधिसूचना जारी कर दी गई है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक 2017 से इस पर अनुसंधान कर रहे थे। अब जल्द ही इसका बीज उत्पादन और व्यावसायिक बुवाई शुरू हो पाएगी। यह किस्म न सिर्फ कीट रोधी है बल्कि उत्कृष्ट गुणवत्ता युक्त भी है।
    इस किस्म को विकसित करने वाले कृषि वैज्ञानिकों में शुमार डॉ सीताराम कुम्हार ने बताया कि 2017 में इसके लिए लगभग 10 वैज्ञानिकों की टीम ने प्रयास आरंभ किए थे।
    इस किस्म को वर्ष 2021-22 से 2023- 24 लगातार 3 वर्षों तक ‘एआईसीआरपी ऑन स्पीशीज’ परियोजना के अंतर्गत विभिन्न केंद्रों पर मूल्यांकन किया गया ।केंद्रीय किस्म विमोचन समिति (सीएससी) की ओर से 4 अप्रैल 2025 को नई वैरायटी को रिलीज करने की मंजूरी दी गई इसके बाद 1 सितंबर को भारत सरकार ने गजट अधिसूचना जारी कर जोधपुर ‘जीरा-1’ को पंजीकृत किया।

    “जोधपुर जीरा -1” की खासियत
    अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक डॉ मोतीलाल महरिया के अनुसार यह किस्म जीरे में उकठा एवं कालिया बिमारी के लिए प्रतिरोधक क्षमता युक्त है। इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है इससे प्रदेश के किसानों को बड़ा आर्थिक फायदा होगा। कृषि वैज्ञानिक डॉ रमेश कुमार के अनुसार यह अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए भी बेहतरीन है । इस किस्म में तेल की गुणवत्ता भी काफी अच्छी है।

    जोधपुर जीरा-1’ की अन्य विशेषताएँ:-
    औसत उपज: 5–7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
    उपज में बढ़ोतरी: मौजूदा जीरा किस्म GC-4 से 20–22% अधिक उत्पादन।
    तेल की मात्रा: 4.34%।
    अवधि: 118–138 दिनों में पकने वाली।
    रोग प्रतिरोधकता: उकता एवं झुलसा रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी।
    अनुकूल क्षेत्र: राजस्थान के सिंचित जीरा उत्पादक क्षेत्र।

    इन वैज्ञानिकों ने दिया योगदान-
    विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान, डॉ एम एम सुन्दरियां ने बताया कि इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों में डॉ सीताराम कुम्हार, डॉ रमेश कुमार, डॉ एम एल महरिया, डॉ मनीष कुमार, डॉ नम्रता सहित सहयोगी वैज्ञानिकों के रूप में डॉ रामदेव सुतलिया, डॉ सुरेंद्र कुमार, डॉ अर्जुन लाल बिजारणिया, डॉ शालिनी पांडे एवं डॉ हरी दयाल चौधरी सम्मिलित है।

    प्रदेश का नाम विश्व पटेल पर अंकित -कुल गुरु
    विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत का परिणाम प्रदेश को मिला है। देश भर में सफल परीक्षण के बाद इस किस्म की आधिकारिक मंजूरी से किसानों का सपना सच हो गया है। यह किस्म किसानों को आर्थिक मजबूती देगी, साथ ही विश्व पटल पर प्रदेश का नाम भी इस से रोशन होगा।

    -प्रो अखिल रंजन गर्ग, कुलगुरु कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर

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