25 करोड़ के गबन की बनाई थी योजना, अब चुकाने पड़ेंगे 150 करोड़

रांची। झारखंड में राजस्व संग्रह के लिए नित नए उपाय कर रही सरकार के लिए कुछ लापरवाह अधिकारी परेशानी खड़ी कर रहे हैं। इससे सरकारी खजाने को झटका लग सकता है और गलत तरीके से काम करने के बाद पैसा क्लेम करने वालों को मोटी रकम चुकानी पड़ सकती है।

मामला वर्ष 2011 में हुए सिकिदिरी हाइडल घोटाले से जुड़ा है। तत्कालीन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड (जेएसईबी) और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के कुछ अधिकारियों ने मिलकर सिकिदिरी परियोजना की मरम्मत और जीर्णोद्धार के नाम पर घोटाले की योजना बनाई थी।

इसमें विद्युत बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन एसएन वर्मा, तत्कालीन सदस्य (वित्त) आलोक शरण, भेल के तीन वरिष्ठ अधिकारी और नॉर्दर्न पावर इरेक्टर के अधिकारी शामिल थे। इसमें फिलहाल सीबीआइ जांच चल रही है।

बता दें कि साजिश के तहत परियोजना के जीर्णोद्धार को दो चरणों में बांटा गया था। पहले चरण में छोटे-मोटे काम तत्काल करने थे और बंद परियोजना से बिजली उत्पादन शुरू करना था, जिसकी लागत 50 लाख से एक करोड़ रुपये थी।

यह काम उस समय के बिजली संकट का फायदा उठाने के लिए किया गया, जब झारखंड को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही थी। दूसरे चरण में मशीन के फटे रोटर की मरम्मत जैसे बड़े काम शामिल थे, जिसके लिए 25 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार किया गया था।

योजना यह थी कि पहले चरण का काम पूरा कर दूसरे चरण का काम शुरू नहीं कर शेष राशि का गबन कर लिया जाए। गबन उजागर होने के बाद जब भुगतान रोक दिया गया, तो कंपनी ने 20 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान ऊर्जा निगम के अधिकारियों ने अपने स्तर पर पूरी लापरवाही बरती। इसका नतीजा यह हुआ कि कोर्ट ने 20 करोड़ रुपये की राशि का आकलन ब्याज सहित करते हुए 150 करोड़ रुपये भुगतान करने का आदेश दिया है।

इसकी जानकारी मिलने के बाद ऊर्जा निगम में हड़कंप है। ऊर्जा निगम ने कोर्ट में अपना पक्ष प्रभावी ढंग से नहीं रखा और यह नहीं बताया कि उसने दूसरे चरण का काम नहीं किया है।

नतीजतन कोर्ट ने उत्पादन निगम द्वारा जारी कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र के आधार पर भेल के पक्ष में फैसला दे दिया। कोर्ट के विपरीत निर्णय आने के बाद ऊर्जा निगम के अधिकारियों ने 11 माह तक अपील दायर नहीं की, जिससे मामला कालातीत हो गया। इसके बाद भेल ने निष्पादन केस दायर किया, ताकि ऊर्जा निगम से धनराशि वसूल कर नॉर्दर्न पावर इरेक्टर को दी जा सके और उसका हिस्सा बांटा जा सके।

ऊर्जा निगम ने पूछा तो बताया गया कि कोई केस नहीं है, अब जांच कमेटी बनाई है जानकारी के अनुसार ऊर्जा विकास निगम ने ऊर्जा उत्पादन निगम से पूछा था कि क्या कोई कोर्ट केस लंबित है, तो उत्पादन निगम के अधिकारियों ने गलत जानकारी देते हुए कहा कि कोई केस नहीं है।

यह पूरा मामला गुपचुप तरीके से चल रहा था, जब तक यह ऊर्जा निगम के एमडी और सीएमडी के संज्ञान में नहीं आया। तब तक घाटा बहुत बड़ा हो चुका था। निदेशक मंडल ने इस मामले में शासन को अवगत कराने और जांच कमेटी बनाने का निर्णय लिया।

जांच समिति में देवाशीष महापात्रा जीएम आंतरिक लेखा परीक्षा, सुरेश सिन्हा प्रत्यक्ष विद्युत वितरण निगम और सुनील दत्त खाखा जीएम (एचआर) ऊर्जा निगम शामिल हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here