अलवर. गंगा दशहरा के अवसर 16 जून को तरुण आश्रम भीकमपुरा में गंगा सद्भावना सभा आयोजित की गई। जिसमें तरुण भारत संघ के अध्यक्ष जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, तभासं के समस्त कार्यकताओं ने गंगा पूजन किया और तभासं के पूर्व उपाध्यक्ष प्रो. जीडी अग्रवाल को स्मरण किया।
गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित होने के साथ-साथ उसको राष्ट्रीय संरक्षण व प्रबंधन के लिए गंगा भक्त परिषद् एवं कानून बनाने की जरूरत है। जिससे भविष्य में गंगा पर कोई नया बांध न बने और खनन रूके। बस यही चाह सांनद जी (प्रो. जी.डी. अग्रवाल) की पूरी नहीं होने पर उन्होनें अपनी मां गंगा के लिए 11 अक्टूबर 2018 को प्राण न्योछावर कर दिए।
यहां जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, हे गंगे, शंकर के गायन से, विष्णु पर पिघलकर बूंद बनी। ब्रह्मा ने उस बूंद को कमंडल में समेट कर कहा कि, आप गंगा हो। आप मेरे कमंडल में आयी, इसलिए आपके भीतर ब्रह्म सर्जन की क्षमता हो गई। आपके अंदर विष्णु के पालन की और शिव के संहार की क्षमताएं है। इसलिए आप इस ब्रह्मांड की ब्रह्मा, विष्णु और महेश है।
मां गंगा की स्मृतिछाया में सिर्फ लहलहाते खेत, माल से लदे जहाज ही नहीं बल्कि वाल्मीकि का काव्य, बुद्ध- महावीर के विहार, अशोक, अकबर व हर्ष जैसे सम्राटों के पराक्रम तथा तुलसी कबीर और गुरुनानक की गुरुवाणी सब… सब एक साथ जीवंत हो उठते हैं। जाहिर है कि गंगा… किसी एक जाति. धर्म या वर्ग की नहीं, बल्कि पूरे भारत की अस्मिता और गौरव की पहचान है।
अग्रवाल ने हरिद्वार में किया था 111 दिन आमरण अनशन
गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ-साथ उसको राष्ट्रीय संरक्षण के लिए एक बड़ी आवाज प्रो जी. डी. अग्रवाल ने उठाई, उन्होंने 2007 में उत्तरकाशी से यह काम शुरू किया और 2018 में हरिद्वार में 111 दिन आमरण अनशन करते हुए प्राणों का बलिदान कर दिया। सरकार ने अपनी पुलिस बल के द्वारा जबरदस्ती उठवाया। लेकिन उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने उन्हें फटकार लगाते हुए मुख्य सचिव को कहा अगले 12 घंटे में समस्या का समाधान निकालने को कहा था। उत्तराखंड सरकार ने उच्च न्यायालय की अवमानना करके समाधान नहीं निकाला था।
समाज से ही होगी गंगा पुनर्जीवित
जब तक गंगा राज-समाज और संत… तीनों की बनी रही, तब तक गंगा.. गंगा थी। बाद में हर कोशिश बेकार हुई। गंगा को यदि सचमुच पुनर्जीवित करना है, तो उसे पुनः समाज के हाथों में सौंपना ही होगा। राज समाज और संत… तीनों को मिलकर गंगा के संरक्षण में अपने दायित्व की तलाश व उसके निर्वाह के लिए व्यवस्था और नीति बनानी होगी। कुंभ के मूल अभिप्राय सिद्धांतों की ओर वापस लौटे बगैर यह हासिल होने वाला नहीं। यह एक पक्के संकल्प के साथ ही संभव है। विकल्प तलाशने वाले गंगा की रक्षा नहीं कर सकते।