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    तीन बार पढ़ाई छुड़वाई, पर संकल्प व सहयोग बड़ा था इसलिए डॉक्टर बन गए तैयब खान

    तैयब खान एक ऐसे डॉक्टर जो कहते है मेडिकल में अभी भी आपसी संवाद की कमी है

     

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    राजेश रवि, अलवर

    छोटे गांवों से उठकर बड़े सपने देखने वाले अक्सर या तो हालात से हार जाते हैं या फिर उन्हें बदलने का जज़्बा पैदा कर देते हैं। डॉ. तैयब खान का जीवन इस दूसरे प्रकार की कहानी है – एक ऐसे युवक की जो IAS बनना चाहता था, लेकिन डॉक्टर बनकर सेवा का माध्यम बन गया।

    अलवर जिले के छोटे से गांव धनेटा से निकलकर, SMS मेडिकल कॉलेज, जयपुर से डॉक्टर बनने तक की यात्रा में उनके सामने सामाजिक बंदिशें, आर्थिक संघर्ष और पहचान को लेकर अस्वीकार की पीड़ा भी रही – लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी

    बचपन में जबरन पढ़ाई छुड़वाई गई, सगाई कर दी गई, किराए पर कमरा नहीं मिला , पर इन सबसे ऊपर रहा उनका ध्येय: सेवा। आज वे सानिया हॉस्पिटल के माध्यम से अलवर और आसपास के हजारों मरीजों के लिए गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा का पर्याय बन चुके हैं।

    जानिए उनके बचपन के हालात से आज तक की कहानी – 

    गांव धनेटा से शुरू हुई यह यात्रा : डॉ. तैयब खान की जीवन यात्रा का आरंभ अलवर जिले के रामगढ़ क्षेत्र के छोटे से गांव ‘धनेटा’ से हुआ। यह वही गाँव है जहां से पहली बार कोई युवक डॉक्टर बनने में सफल हुआ, और वह युवक थे तैयब खान। उनके डॉक्टर बनने की खबर जैसे ही गांव में फैली, वहां एक उत्सव जैसा माहौल बन गया। मगर इस सफलता तक पहुंचने का रास्ता बेहद संघर्षपूर्ण और बाधाओं से भरा हुआ था।

    बचपन में ही टूटा था शिक्षा का सिलसिला

    जब तैयब कक्षा 6 में पढ़ रहे थे, तब पारिवारिक सोच और सामाजिक परंपराओं के चलते उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई। पिता ने यह सोचकर सगाई भी कर दी कि यदि उम्र बढ़ गई और लड़का पढ़-लिख गया, तो शादी के लिए लड़की नहीं मिलेगी। स्कूल जाना बंद हुआ, लेकिन तभी उनके जीवन में कुछ ऐसे शिक्षक आए जिन्होंने दिशा बदल दी। विद्यालय के प्रधानाचार्य कालीचरण शर्मा और अन्य शिक्षकगण खुद उनके घर पहुंचे और परिवार को समझाया कि यह बालक होनहार है, इसे पढ़ाई से वंचित करना भविष्य के साथ अन्याय होगा। उन्होंने यह भी विश्वास दिलाया कि “शादी हम करवाएंगे, लेकिन पहले इसे पढ़ने दो।” यह समर्पण रंग लाया, और परिवार फिर से पढ़ाई के लिए तैयार हो गया। जब तैयब कक्षा 8 में पहुंचे, परिवार ने एक बार फिर से सगाई कर दी।

    विज्ञान के द्वार: गणित से बायो तक

    कक्षा 11 में पहुँचने पर तैयब ने गणित विषय चुना। उनका सपना था इंजीनियरिंग करना और फिर IAS बनना। लेकिन उनके शिक्षकों ने एक बार फिर उनकी प्रतिभा को समझा और उन्हें समझाया कि बेरोजगारों में इंजीनियरों की संख्या अधिक है। उन्हें बायोलॉजी लेनी चाहिए। शिक्षक जानते थे कि इस बालक में डॉक्टर बनने की पूरी क्षमता है। कई दौर की बातचीत और मनाने के बाद उन्होंने गणित छोड़कर बायो विषय चुन लिया ।

     

    सपनों की दिशा: इंजीनियरिंग से चिकित्सा की ओर

    मुबारिकपुर निवासी डॉ. भूपेंद्र गुप्ता, जो उनके घनिष्ठ मित्र भी थे, उन्हें पूर्ण विश्वास था कि तैयब का वास्तविक मार्ग चिकित्सा सेवा है। उन्होंने तैयब की इच्छा जाने बिना ही PMT (प्री-मेडिकल टेस्ट) का फॉर्म लाकर उनके सामने रख दिया और कहा –

    “तू डॉक्टर बनेगा – ये मैं तय कर चुका हूं।”

    तैयब पहले तो हिचकिचाए, लेकिन फिर भाग्य के उस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। और परिणाम?

     राजस्थान PMT में 26वीं सामान्य रैंक, वह भी बिना किसी कोचिंग, बिना किसी विशेष मार्गदर्शन के  केवल आत्मविश्वास, ईमानदार मेहनत और आशीर्वाद के बल पर।

    इसके बाद उन्होंने जयपुर के सवाई मानसिंह (SMS) मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया और MBBS की पढ़ाई पूरी की। यहीं से उन्होंने बाद में MD की उपाधि भी प्राप्त की।

    दिल्ली से अलवर की ओर – सेवा की वापसी

    मेडिकल शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत उन्होंने एक वर्ष तक दिल्ली में सीनियर रेजीडेंसी की, जहाँ उन्हें आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों और व्यवहारिक अनुभव का अवसर मिला। लेकिन बड़े शहर में बेहतर अवसरों के बावजूद उनका मन वहां नहीं रमा। वह जानते थे कि अपने जिले, अपने लोगों को चिकित्सा सेवा देना ही उनका वास्तविक धर्म है। इसलिए उन्होंने बड़े-बड़े कॉर्पोरेट अस्पतालों की संभावनाओं को छोड़कर अलवर लौटने का संकल्प लिया ।

    अलवर में संघर्ष और स्थापना

    चिकित्सा की उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद जब डॉ. तैयब खान अपने जिले अलवर लौटे, तो उनके मन में सेवा का उत्साह था, पर यथार्थ के धरातल पर स्वागत पूर्वाग्रहों और सामाजिक भेदभाव ने किया। उन्हें एक सामान्य-सा किराए का कमरा तक उपलब्ध नहीं कराया गया। यह घटना न केवल एक युवा डॉक्टर की उम्मीदों पर चोट था, बल्कि उस समाज की स्थिति भी उजागर करता था, जहां जाति, धर्म और समुदाय के आधार पर अब भी मूल्यांकन किया जाता था।

    ऐसे समय में उनके एक सीनियर डॉक्टर और घनिष्ठ मित्र नरेंद्र यादव ने आगे बढ़कर उनका साथ दिया। उन्होंने न केवल उन्हें अपने पास ठहरने की जगह दी, बल्कि उन्हें मानवता और मित्रता का वास्तविक अर्थ भी सिखाया। उसी ठिकाने से डॉ. तैयब ने अपने चिकित्सकीय अभ्यास की शुरुआत की यहीं से वे मरीजों को देखने लगे और जरूरत पड़ने पर चौपड़ा अस्पताल में भर्ती की व्यवस्था करते।

    एक छोटी जगह से बड़ी शुरुआत

    धीरे-धीरे हालात बदले। उनके समर्पण, निष्ठा और व्यवहार से लोगों का भरोसा बढ़ने लगा। भगत सिंह चौराहे के पास एक छोटा-सा स्थान मिला, जहां उन्होंने अपना पहला अस्पताल शुरू किया। साधारण सुविधाओं के साथ आरंभ हुआ यह क्लिनिक जल्दी ही लोगों की पहली पसंद बनने लगा।

    2008: एक सपना आकार लेता है

    वर्ष 2008 में उन्होंने सुभाष नगर क्षेत्र में ज़मीन लेकर एक बड़े अस्पताल की नींव रखी – यह था सानिया हॉस्पिटल। अस्पताल की स्थापना भी आसान नहीं रही। भूमि मिलने से लेकर निर्माण तक, हर चरण में उन्हें संघर्ष, अस्वीकार और व्यवधानों का सामना करना पड़ा। कभी प्रशासनिक उलझनें, कभी सामाजिक संदेह, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक-एक चुनौती को स्वीकार कर, उन्होंने उसे अवसर में बदला।

    आज का सानिया हॉस्पिटल

    आज वही सानिया हॉस्पिटल, अलवर जिले के सबसे भरोसेमंद और आधुनिक चिकित्सा संस्थानों में शुमार है। यहाँ हर वर्ग, हर धर्म, हर जरूरतमंद को एक जैसी सेवा मिलती है – बिना किसी भेदभाव के। यह केवल एक अस्पताल नहीं, बल्कि डॉ. तैयब खान के विश्वास, धैर्य और दृढ़ संकल्प की जीवंत मिसाल है।

    आगामी लक्ष्य: चिकित्सा सेवा का विस्तार और समानता

    डॉ. तैयब खान का मानना है कि चिकित्सा केवल उपचार नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्तरदायित्व है। उनके दृष्टिकोण में अस्पताल कोई भवन नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान होना चाहिए जहां मानवता सांस लेती है, और हर पीड़ित व्यक्ति को आशा की किरण मिलती है।

    डॉ. तैयब का अगला बड़ा सपना है –”अलवर का कोई भी गंभीर मरीज इलाज के लिए न जयपुर जाए, न दिल्ली और न ही गुरुग्राम।” उनकी आकांक्षा है कि अलवर जिले में ही एक ऐसी चिकित्सीय व्यवस्था विकसित हो, जो हर वर्ग – चाहे वह गरीब हो या अमीर – को गुणवत्तापूर्ण, सस्ता और सम्मानजनक इलाज दे सके

    वे कहते हैं –”गरीब और अमीर की जान की कीमत एक जैसी होती है।

    परंतु आज भी गरीब को इलाज नहीं मिल पाता – यह अस्वीकार्य है।”

    डॉ. तैयब इस बात से भी चिंतित रहते हैं कि अलवर जैसे बड़े जिले में चिकित्सा विकास पर समुचित विमर्श नहीं होता। “यहाँ तक कि डॉक्टर भी आपस में चिकित्सा से जुड़ी चिंताओं पर खुलकर संवाद नहीं करते। उनके अनुसार यह एक बड़ा सामाजिक अभाव है, जिसे सुधारना आवश्यक है।

    अस्पताल: सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, एक आस्था का स्थान

    उनका मानना है कि –”मरीज जब अस्पताल आता है तो वह उसे मंदिर-मस्जिद जैसा समझकर आता है। वहां भी अगर उसे न्याय न मिले, तो यह सबसे बड़ा अन्याय है।”

    पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध एक मानवीय सोच 

    वे कहते हैं कि”लोग बड़े शहरों में पूंजीपतियों के अस्पतालों में जाकर केवल पैसा ही नहीं, बल्कि समय और मानसिक संतुलन भी गंवाते हैं।”उनका अनुभव है कि कई बार मरीज दवाओं से नहीं, बल्कि डॉक्टर के विश्वास और सहानुभूति से ठीक होता है। इसलिए वे एक ऐसा सिस्टम खड़ा करना चाहते हैं जहां इलाज केवल व्यापार न होकर एक सेवा भाव से किया जाए।

    एक सच्चे चिकित्सक की सोच

    डॉ. तैयब का यह स्पष्ट मत है कि “अस्पतालों को उद्योग न बनाकर सेवा केंद्र बनाना होगा। जब तक गरीब और आमजन को सस्ता और प्रभावी इलाज नहीं मिलेगा, तब तक चिकित्सा व्यवस्था अधूरी मानी जाएगी।”

    समाजसेवा: कर्म से प्रेरित उत्तरदायित्व

    डॉ. तैयब खान केवल एक कुशल चिकित्सक ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील समाजसेवी भी हैं, जिनकी दृष्टि रोगी तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के भविष्य – बच्चों और युवाओं – तक जाती है। उनका मानना है कि चिकित्सा सेवा के समान ही शिक्षा भी जीवन परिवर्तन की एक सशक्त कुंजी है।

    हर वर्ष डॉ. तैयब खान 5 से 7 आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन मेधावी विद्यार्थियों की कोचिंग फीस स्वयं वहन करते हैं। उनका उद्देश्य स्पष्ट है –

    “अगर किसी बच्चे में प्रतिभा है और वह पैसे के अभाव में नहीं पढ़ पा रहा है, तो मैं उसके साथ खड़ा हूं।”

    उन्होंने सिर्फ सहायता की घोषणा नहीं की, बल्कि वर्ष 2009 से यह कार्य लगातार कर रहे हैं। वे मेवात क्षेत्र के सभी समाजों के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों का सार्वजनिक सम्मान करते हैं, उन्हें मंच देते हैं, प्रेरणा देते हैं और यह विश्वास जगाते हैं कि उनके पीछे समाज और कुछ अच्छे लोग खड़े हैं।

    डॉ. तैयब के प्रयासों से प्रतिवर्ष एक ऐसा कार्यक्रम आयोजित होता है, जहां समाज के अलग-अलग वर्गों से आने वाले प्रतिभावान युवाओं को सम्मानित किया जाता है। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक संदेश होता है कि “प्रतिभा किसी जाति, धर्म, या समुदाय की मोहताज नहीं होती – उसे बस सहयोग चाहिए।”

    संघर्ष ही जीवन का सत्य

    उनका जीवन दर्शन संघर्ष से गहराई से जुड़ा है। वे कहते हैं –

    “अगर जीवन है तो संघर्ष है, और अगर संघर्ष खत्म हो गया, तो जीवन भी खत्म समझो।”

    यह वाक्य केवल शब्द नहीं, बल्कि उनकी पूरी जीवन यात्रा का सार है। वे मानते हैं कि जीवन को सार्थक बनाने का सबसे सशक्त मार्ग है – दूसरों के जीवन को छूना, उन्हें आगे बढ़ने की राह देना।

     

    एक डॉक्टर का धर्म और दृढ़ संकल्प

    डॉ. तैयब खान जब पीछे मुड़कर अपने जीवन के रास्ते देखते हैं, तो उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं कि वे IAS नहीं बन सके। वे मानते हैं कि जो मार्ग उन्होंने चुना, वह केवल एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा और संवेदना का धर्म है – और यही उन्हें जीवन की असली संतुष्टि देता है।

    वे कहते हैं –

    “आईएएस अधिकारी के समक्ष कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जहां एक आम व्यक्ति भी उसे अपने हित में झुका सकता है। लेकिन डॉक्टर का धर्म इससे अलग है – एक सच्चे डॉक्टर को कोई झुका नहीं सकता। वह केवल इंसानियत के प्रति जवाबदेह होता है।”

    इसी सोच ने उन्हें यह विश्वास दिया कि उनका मार्ग कम प्रतिष्ठित नहीं, बल्कि अधिक पवित्र है। उनका मानना है कि जब कोई मरीज डॉक्टर के पास आता है, तो वह न केवल अपने शरीर का इलाज चाहता है, बल्कि एक भरोसे, संवेदना और ईमानदारी की उम्मीद भी लेकर आता है – और यही डॉक्टर का सच्चा धर्म है।

    उनका परिवार इस सोच को साकार करता हुआ प्रतीत होता है:

    उनकी पत्नी यासमीन एक सशक्त पारिवारिक सहयोगी हैं, जिन्होंने हर संघर्ष में उनका साथ निभाया।

    उनके पुत्र फरहान, MBBS की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और इस समय इंटर्नशिप कर रहे हैं।

    बेटी सानिया, वर्तमान में MBBS सेकंड ईयर की छात्रा हैं।

    और सबसे छोटे पुत्र रेहान, बारहवीं कक्षा में अध्ययनरत हैं – जो अब अपने मार्ग की तैयारी कर रहा है।

     

    वर्तमान हालात में हिंदू मुस्लिम के हल्ले का कोई असर – 

    “जब मैं पढ़ रहा था, तब मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र और सहयोगी हिंदू समुदाय से थे। और आज भी, चाहे दोस्ती हो या मेरे मरीज – उनमें बड़ी संख्या हिंदू भाइयों की ही है।”

    उनका यह कथन केवल एक अनुभव नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक समरसता का प्रतिबिंब है, जो भारत जैसे देश की आत्मा है। वे मानते हैं कि धर्म व्यक्ति की पहचान नहीं, बल्कि उसकी संवेदना, कर्म और सोच ही उसकी असली पहचान होती है।

    अशिक्षा नहीं, शिक्षा में दोष है

    डॉ. तैयब खान का स्पष्ट मत है कि देश में जो भी सामाजिक खोट या विघटन दिखता है, उसका मूल कारण अशिक्षा नहीं, बल्कि शिक्षितों का असंवेदनशील व्यवहार है।

    “जब अनपढ़ किसी बात को न समझे, तो आश्चर्य नहीं होता। लेकिन जब पढ़े-लिखे लोग भी वही संकीर्णता दिखाएं, तो समाज के लिए वह कहीं अधिक खतरनाक होता है।”

    वे मानते हैं कि समाज को केवल धार्मिक सहिष्णुता नहीं, बल्कि बौद्धिक ईमानदारी और व्यवस्थागत सुधार की भी उतनी ही आवश्यकता है।

    युवाओं के नाम संदेश

    वर्तमान समय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आज का युवा अधिक संसाधनयुक्त होते हुए भी भीतर से टूट रहा है। डॉ. तैयब खान इसे बेहद गंभीर सामाजिक संकट मानते हैं।

    वे कहते हैं –“आज की पीढ़ी भ्रम, अवसाद (डिप्रेशन) और असंतोष से घिरी हुई है। कई बार यह स्थिति आत्महत्या जैसे चरम निर्णयों तक भी पहुँच जाती है।”

    इन समस्याओं के पीछे वे दो मूल कारण मानते हैं –

    संस्कारों का क्षरण, और

    जीवन के संघर्षों से भागने की प्रवृत्ति।

     

    ईश्वर के बाद सबसे बड़ी शक्ति: माता-पिता

    डॉ. तैयब का मानना है कि अगर कोई शक्ति ईश्वर के बाद सबसे पूजनीय और प्रभावशाली है, तो वह माता-पिता हैं। “माता-पिता न केवल जन्म देते हैं, बल्कि जीवन जीने की कला और संघर्ष करने की ताकत भी वही सिखाते हैं। वे युवाओं से आग्रह करते हैं कि वे माता-पिता की अनुभवी सलाह और स्नेह को नकारें नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन की आंतरिक शक्ति बनाएं।

     

    अधिक स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और समाचारों के लिए हमारी स्टोरी पढ़ें https://missionsach.com/%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%b5%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%a1%e0%a5%89%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b8-%e0%a4%b5-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%a1%e0%a4%bf%e0%a4%95.html

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