मुंबई: सुप्रीम कोर्ट ने फेमस यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना को फटकार लगाई है। दिव्यांगों पर टिप्पणी करने के लिए कोर्ट ने अल्लाहबादिया को वीडियो बनाकर सार्वजनिक तौर से माफी मांगने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को गाइडलाइन बनाने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कमाई के लिए मजाक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की जाए। रणवीर अल्लाहबादिया के यूट्यूब चैनल पर 10.4 मिलियन सब्सक्राइबर्स हैं। रणवीर अल्लाहबादिया पहले भी विवादों में रह चुके हैं। उन्होंने समय रैना के यू-ट्यूब शो में पैरेंट्स की पर्सनल लाइफ बेशर्म टिप्पणी की थी। यह मामला महिला आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। बाद में रणवीर ने वीडियो में माफी मांगी।
हास्य को अच्छी तरह से लिया जाता है और यह जीवन का एक हिस्सा है। हम खुद पर हंसते हैं। लेकिन जब हम दूसरों पर हंसने लगते हैं और संवेदनशीलता का उल्लंघन करते हैं। सामुदायिक स्तर पर, जब हास्य उत्पन्न होता है, तो यह समस्याग्रस्त हो जाता है। और यही बात आज के तथाकथित प्रभावशाली लोगों को ध्यान में रखनी चाहिए। वे भाषण का व्यवसायीकरण कर रहे हैं। समुदाय का इस्तेमाल कुछ वर्गों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है, यह व्यावसायिक भाषण है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची की टिप्पणी
क्या है यह पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश एसएमए क्योर फाउंडेशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है। फाउंडेशन ने कॉमेडियन समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर पर दिव्यांग लोगों के लिए असंवेदनशील चुटकुले बनाने का आरोप लगाया गया था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कॉमेडियनों से कहा कि आपने अदालत के सामने जो माफ़ी मांगी, वही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भी मांगें। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि प्रभावशाली लोग भाषण का व्यवसायीकरण कर रहे हैं और समुदाय का इस्तेमाल दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
बताइए कितना जुर्माना लगाएं?
हास्य कलाकारों के वकील ने अदालत को सूचित किया कि उन्होंने बिना शर्त माफ़ी मांग ली है। न्यायमूर्ति कांत ने पूछा कि अगली बार हमें बताइए कि हम आप पर कितना जुर्माना लगाएं। वकील ने कहा कि हम इसे आप पर छोड़ते हैं। यह विकलांग समूहों के लाभ के लिए होना चाहिए। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि आज यह दिव्यांगों के बारे में है, अगली बार यह महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों के बारे में हो सकता है। इसका अंत कहां होगा।फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि अदालत ने एक कड़ा संदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हर जगह लागू नहीं होता है। अगर कोई कमर्शल स्पीच के लिए किसी कम्यूनिटी की भावनाओं को आहत करता है तो उसे रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग लोगों का मजाक उड़ाना गलत है। ऐसा करने वाले सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों को माफी मांगनी होगी वरना उन पर जुर्माना लगाया जाएगा।