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    दुनिया को राह दिखाएगा राजस्थान का यह गांव, बंजर भूमि को बना रहा हरा-भरा नंदनवन

    कल्पना कीजिए- दूर तक फैली बंजर जमीन, तपती धूप और लहराता मरुस्थल… अचानक इसी तपते धरातल पर कोई उग आया हरियाली का सपना. राजस्थान में बीकानेर जिले के श्रीडूंगरगढ़ की उत्तरी छोर पर बसे लोढ़ेरा गांव में यह सपना साकार हुआ, जब गांववालों ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 125वीं जयंती (2027 में) को समर्पित करते हुए श्मशान भूमि को हरे-भरे संस्थागत वन में बदल डाला. यह सिर्फ पौधे लगाने का कार्यक्रम नहीं था. यह एक भावनात्मक आंदोलन था. यहां हर घर ने एक पौधे को “परिवार का हरित सदस्य” मानकर गोद लिया. जैसे घर में नया बच्चा आता है और सब उसके लालन-पालन में जुट जाते हैं, वैसे ही यहां हर परिवार ने पौधे को अपना मानकर उसकी देखभाल का संकल्प लिया.

    इस मौके पर गांव की 8 बीघा श्मशान भूमि पर ‘चौथा चौधरी चरण सिंह स्मृति संस्थागत वन’ विकसित किया गया. इसमें खेजड़ी, नीम, पीपल, जामुन, शीशम, करंज, गुलमोहर सहित 1100 से अधिक पौधे रोपे गए. इसके साथ ही हर परिवार ने घर के आसपास पौधे लगाकर उन्हें ‘परिवार का हरित सदस्य’ माना. लोगों की ये पहल पर्यावरणविद श्याम सुंदर ज्याणी की ‘पारिवारिक वानिकी’ सोच पर आधारित है.इस कार्यक्रम के नायक बने लैंड फॉर लाइफ अवार्ड से सम्मानित प्रो. ज्याणी. उन्होंने जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय असंतुलन, जैव विविधता संरक्षण और चौधरी चरण सिंह के किसान हितैषी विचारों पर चर्चा की.

    जनसहभागिता बनी प्रेरणा

    जाट ट्रस्ट लूणकरणसर के अध्यक्ष मोटाराम चौधरी ने इसे बड़ा सामूहिक प्रयास करार दिया. उन्होंने कहा कि लोढ़ेरा का यह हरित जज्बा पूरे जिले के लिए प्रेरणा बनेगा. गांव के पर्यावरण प्रेमी खुमाना राम सारण ने बताया कि पिछले 15 दिनों से गांव के युवाओं ने बिना किसी सरकारी सहायता के श्रमदान कर यह पौधरोपण का काम किया है.

    अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचा संदेश

    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की एनपीयू स्टूडेंट एंबेसडर अवनी ज्याणी ने बताया कि लोढ़ेरा की यह पहल हमारे ग्रामीण भारत की पर्यावरणीय संवेदनशीलता को दिखाती है. उन्होंने ऐलान किया कि 1 जुलाई को वो यूएन डिकेड वेबिनार (मिडिल ईस्ट एशिया) में इस मॉडल को पेश करेंगी.

    प्लास्टिक मुक्त गांव की ओर एक कदम

    कार्यक्रम के दौरान महिलाओं ने प्लास्टिक की चाय छलनी के बहिष्कार का संकल्प लिया. प्रो. ज्याणी के अनुसार, प्लास्टिक की छलनी गर्म तरल में घुलकर माइक्रोप्लास्टिक कणों से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है. इसी क्रम में सभी महिलाओं को स्टेनलेस स्टील की छलनियां वितरित की गईं. बजरंग भाम्भू ने बताया कि यह अभियान अब गांव-गांव में चलाया जाएगा.

    125 स्मृति वन और 1.25 करोड़ पौधों का लक्ष्य

    29 मई 2025 को शुरू हुई इस पहल का लक्ष्य 2027 तक 125 संस्थागत स्मृति वन विकसित करना और 1.25 करोड़ पौधे रोपना है. अब तक 203 स्मृति वन और 40 लाख पौधे पारिवारिक वानिकी मॉडल के तहत जनभागीदारी से लगाए जा चुके हैं. यह मॉडल अब न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता पा चुका है. बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में यह विषय सम्मिलित है. साथ ही यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और UNEP के Nature Positive Universities नेटवर्क का भी हिस्सा है.

    संस्थागत मान्यता और वैश्विक मंच पर प्रस्तुति

    संयुक्त राष्ट्र की CoP-15 (आइवरी कोस्ट) और CoP-16 (सऊदी अरब) सम्मेलनों में पारिवारिक वानिकी को एक प्रभावी सामुदायिक भूमि पुनर्जीवन मॉडल के रूप में पेश किया गया है. प्रो. ज्याणी के अनुसार, जब परिवार और समुदाय एकजुट होते हैं तो पर्यावरण संरक्षण एक सशक्त जन-आंदोलन बन जाता है.

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