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    सेवा, समर्पण और सफलता की मिसाल – डॉ. जी. एस. सोलंकी 

    डॉ. जी. एस. सोलंकी का जीवन संघर्ष, सेवा और सफलता की प्रेरक कहानी है। अलवर में स्थापित सोलंकी हॉस्पिटल आज एक NABH-सर्टिफाइड संस्थान है।

     

    मिशनसच न्यूज, अलवर।                                                                                            राजस्थान के मालपुरा तहसील के छोटे से गांव डिग्गी में 1951 में जन्मे डॉ. जी. एस. सोलंकी का जीवन संघर्ष, साधना और सफलता की अद्भुत कहानी है। स्वर्गीय श्री देवी सिंह सोलंकी और स्वर्गीय श्रीमती गौरी देवी सोलंकी के घर जन्मे डॉ. सोलंकी ने एक साधारण ग्रामीण परिवेश से उठकर चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिखर तक पहुंचकर समाज को गौरवान्वित किया है।

    शैक्षणिक यात्रा की मजबूत नींव                                                                                            डॉ. सोलंकी की प्रारंभिक शिक्षा डिग्गी मालपुरा से शुरू हुई, जहां से उन्होंने छठी कक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद आठवीं कक्षा अपने मूल गांव पिपलाज से पास की। उनके पिता एक सरकारी पद ‘गिरदावर’ पर कार्यरत थे और स्थानांतरण के कारण वे अजमेर जिले के सावर चले गए। यहीं से डॉ. सोलंकी ने नवमी कक्षा में प्रवेश लिया और बायोलॉजी विषय का चयन किया, क्योंकि उनके पिता की अभिलाषा थी कि उनका पुत्र एक डॉक्टर बने।

    डॉ. सोलंकी की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दसवीं कक्षा में उन्होंने पूरे राजस्थान में 19वीं रैंक प्राप्त की और उन्हें ₹500 प्रतिमाह की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई, जो आगे की पढ़ाई में उनके लिए बड़ी सहायक सिद्ध हुई। इसके बाद उन्होंने महाराजा कॉलेज, जयपुर से पीवीसी और प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान राजस्थान में पहली बार आयोजित हुई पीएमटी परीक्षा में उन्होंने नौवीं रैंक हासिल कर SMS मेडिकल कॉलेज, जयपुर में एमबीबीएस में प्रवेश लिया।

    चिकित्सा सेवा का समर्पण
    राजकीय सेवा में डॉ. सोलंकी की शुरुआत 1978 में बरडोद (अलवर) में एक एड-हॉक नियुक्ति से हुई। कुछ समय सीजीएचएस जयपुर में कार्य करने के बाद उन्होंने 1979 में राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) पास कर अलवर में बतौर चिकित्सा अधिकारी स्थायी रूप से पदभार संभाला। वे कहते हैं, “पेशेंट को देखना और उसका इलाज करना ही मेरा पैशन है।” चिकित्सा उनके लिए केवल पेशा नहीं, बल्कि जनसेवा का माध्यम है।

    सोलंकी हॉस्पिटल” की स्थापना
    वर्ष 1992 में “सोलंकी हॉस्पिटल” की स्थापना की। अस्पताल की शुरुआत मात्र 30 बेड्स और सीमित संसाधनों के साथ हुई थी, लेकिन आज यह 100+ बेड्स वाला मल्टी और सुपर स्पेशियलिटी NABH-प्रमाणित संस्थान बन चुका है — अलवर जिले में इस स्तर का पहला निजी अस्पताल। अस्पताल में आधुनिक चिकित्सा तकनीक, दक्ष डॉक्टरों की टीम और करुणामयी सेवा भावना के साथ रोगियों को टर्शियरी लेवल की सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। डॉ. सोलंकी का प्रयास रहा है कि ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों के मरीजों को विश्वस्तरीय चिकित्सा सेवा अलवर में ही उपलब्ध हो।

     

    छात्र जीवन से नेतृत्व तक का सफर
    एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान डॉ. सोलंकी न केवल एक मेधावी छात्र रहे बल्कि नेतृत्व क्षमता से भी वे अपने साथियों में अलग पहचान रखते थे। वे SMS मेडिकल कॉलेज की छात्रसंघ के जनरल सेक्रेटरी और बाद में जयपुर एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (JARD) के प्रेसिडेंट भी रहे। उन्होंने 1974 में तीसरी रैंक के साथ एमबीबीएस की डिग्री पूरी की और 1978 में मेडिसिन विषय में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री (M.D.) प्राप्त की।

    डॉ. सोलंकी के संघर्षपूर्ण छात्र जीवन का एक प्रेरणादायी प्रसंग यह भी है कि उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई लालटेन की रोशनी में की। उस समय उनके गांव में न अखबार आता था और न ही संचार के अन्य साधन थे। उन्हें पीएमटी की परीक्षा के बारे में जानकारी भी एक मित्र, डॉ. अजय सिंह राठौड़ (वर्तमान में अजमेर में चिकित्सक), के माध्यम से अंतिम समय में मिली। सावर जाकर उन्होंने आवेदन पत्र भरा और कठिन परिस्थितियों के बावजूद परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया

    प्रेरणा के स्रोत और चिकित्सक बनने की प्रेरणा
    डॉ. सोलंकी ने बचपन में अपने गांव डिग्गी मालपुरा में सेवा दे रहे डॉक्टर गर्ग को देखा, जिनकी सेवा भावना, प्रभावशाली व्यक्तित्व और पूरे गांव में उनका आदर देखकर वे बेहद प्रभावित हुए। इसके अलावा डॉक्टर गर्ग के पुत्र आर. पी. गर्ग को गांव में मिलने वाला सम्मान भी उन्हें अत्यंत आकर्षित करता था। इसी प्रेरणा ने उन्हें चिकित्सक बनने के पथ पर अग्रसर किया।

    व्यवस्थित जीवनशैली और अनुशासन का उदाहरण
    डॉ. सोलंकी का दैनिक जीवन अत्यंत अनुशासित और प्रेरक है। वे दिन की शुरुआत मॉर्निंग वॉक और एक घंटे योग से करते हैं, इसके बाद अध्ययन करते हैं। प्रातः 10:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक वे अस्पताल में मरीजों की चिकित्सा सेवा में जुटे रहते हैं। दोपहर के विश्राम और भोजन के बाद शाम 6:30 से 8:00 बजे तक पुनः अस्पताल में मरीजों के बीच रहते हैं। इसके पश्चात जिम जाकर स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और रात लगभग 11:30 बजे विश्राम करते हैं। उनके इस जीवनचर्या से स्पष्ट होता है कि अनुशासन ही सफलता की कुंजी है

    सफलता के सूत्र और नई पीढ़ी के लिए संदेश
    डॉ. सोलंकी मानते हैं कि जीवन में सफलता के पांच मूलमंत्र हैं— Dedication, Honesty, Compassion, Availability और Humanity। उनका कहना है कि यदि इनमें से एक भी तत्व की कमी हो, तो सफलता अधूरी रह जाती है। नई पीढ़ी को वे संदेश देते हैं कि असफलता से घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि असफलता ही सफलता की नींव रखती है। केवल निरंतर मेहनत और आत्मविश्वास ही व्यक्ति को मंजिल तक पहुंचाते हैं।

    रुचियां और वैश्विक पहचान
    डॉ. सोलंकी की रुचि केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है। उन्हें वॉलीबॉल, बैडमिंटन तथा वाद-विवाद में गहरी रुचि रही है। चिकित्सा क्षेत्र में उनका नाम न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सम्मानित है। उन्होंने अमेरिका, रूस, जापान, चीन, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्वीडन, ऑस्ट्रिया सहित अनेक देशों में अकादमिक सम्मेलनों में भाग लिया है और चिकित्सा ज्ञान को वैश्विक स्तर पर साझा किया है।

    डॉ. जी. एस. सोलंकी का जीवन एक आदर्श है—                                                                      संघर्ष से सफलता तक का ऐसा प्रेरक पथ, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक दीपस्तंभ की तरह कार्य करता रहेगा। ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर देश और दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले डॉ. सोलंकी न केवल एक उत्कृष्ट चिकित्सक हैं, बल्कि सच्चे अर्थों में एक जनसेवक और प्रेरणास्रोत भी हैं।
    डॉ जी एस सोलंकी को चिकित्सा क्षेत्र में सेवा और समर्पण के लिए अनेक सम्मानों से नवाजा गया जिनमें महत्वपूर्ण है
    1. नैतिक सम्मान वर्ष 2006 में तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल के हाथों द्वारा
    2. एसएमएस हॉस्पिटल के 75 वर्ष पूर्ण होने पर प्लेटिनम जुबली फंक्शन में डिस्टिंग्यूइश्ड अल्युमिनि अवार्ड मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के हाथों द्वारा दिया गया यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले 100 वरिष्ठ चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले चिकित्सकों को दिया गया था जिनमें से अधिकांश मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर थे पेरीफेरी से आने वाले एकमात्र डॉक्टर सोलंकी थे
    3. APICON अवार्ड 2002 राजस्थान चैप्टर के सफल आयोजन सचिव रहे
    4. वर्ष 2017 में APICON राजस्थान के चेयरमैन और 2018 में अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व किया
    5. FICP फैलोशिप अपने 2017 में प्राप्त की।
    6. क्रिटिकल केयर यूनिट में विशेष योगदान

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