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    भूत बंगले जैसा स्कूल: यह स्कूल नहीं भूत बंगला है’, बच्चे दिन में भी जाने से डरते

    क्या आपने कभी ऐसा सरकारी स्कूल देखा है जो चलता तो है, लेकिन किसी को दिखाई नहीं देता? यह कोई जादू नहीं, बल्कि बांसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र की वह कड़वी सच्चाई है जहां शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही ने 25 से अधिक छात्रों और दो शिक्षकों के भविष्य को अधर में लटका दिया है. शहर से महज चार-पांच किलोमीटर दूर एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय पिछले दो साल से अधिक समय से ‘अदृश्य’ अस्तित्व में है. स्कूल का ना तो कोई भवन है, न कोई स्थायी ठिकाना.

    सितंबर 2023 में अतिवृष्टि से स्कूल का भवन जमींदोज हो गया था, लेकिन तब से लेकर आज तक नए भवन के निर्माण की स्वीकृति तो दूर, बजट का एक रुपया भी जारी नहीं किया गया है. नतीजा… शिक्षा का यह मंदिर कभी किसी ग्रामीण के घर के आंगन में लगता है, तो कभी पशुओं के तबेले में. यह महज खानापूर्ति नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ एक क्रूर मजाक है.

    शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता ये स्कूल

    भीषण गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी, या फिर मूसलाधार बारिश, छात्र स्कूल से नदारद रहने को मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास सिर छिपाने की कोई जगह नहीं है. शिक्षकों ने कई बार उच्चाधिकारियों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी गुहार संबंधित अधिकारियों के कानों तक नहीं पहुंची.

    भवन मालिक की ‘मर्जी’ पर चलता है स्कूल

    यह जानकर आप चौंक जाएंगे कि यह ‘चलती-फिरती’ पाठशाला पिछले दो सालों में कम से कम पांच बार अपना ठिकाना बदल चुकी है. स्कूल का अपना भवन न होने के कारण, शिक्षकों को हर दिन किसी ‘मेहरबान’ भवन मालिक की दया पर निर्भर रहना पड़ता है. अगर भवन मालिक के घर में कोई कार्यक्रम है या कोई अन्य कारण, तो बच्चों को तुरंत किसी और के मकान में शिफ्ट कर दिया जाता है. यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है जहां बच्चों की पढ़ाई का समय भवन मालिक की ‘इच्छा’ पर निर्भर करता है?

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