डॉ. भूपेंद्र गुप्ता – अलवर के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, जिन्होंने सेवा और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से चिकित्सा को मानवता की पूजा बनाया।
मिशनसच न्यूज, अलवर । “सेवा वह दीप है, जो अपने साथ-साथ औरों का पथ भी आलोकित करता है।”
यह कथन डॉ. भूपेंद्र गुप्ता के जीवन पर अक्षरशः चरितार्थ होता है। एक श्रेष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ (पीडियाट्रिशियन), गहरी संवेदनाओं से परिपूर्ण काउंसलर, नियमित साधक और अत्यंत विनम्र मानव के रूप में डॉ. गुप्ता एक ऐसा नाम हैं जो चिकित्सा को केवल पेशा नहीं, बल्कि ईश्वर की प्रेरणा से प्राप्त सेवा का माध्यम मानते हैं।
शुरुआत एक साधारण गाँव से
28 अगस्त 1974 को अलवर जिले की रामगढ़ तहसील के कस्बे मुबारिकपुर में जन्मे डॉ. भूपेंद्र गुप्ता, अपने माता-पिता श्री मुरारीलाल बंसल और श्रीमती रुक्मिणी देवी की चौथी संतान हैं। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गाँव के ही राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से विज्ञान संकाय में प्राप्त की, और 12वीं की पढ़ाई के लिए उन्होंने अलवर शहर के न्यू हायर सेकेंडरी स्कूल में प्रवेश लिया — वह भी तब जब सत्र का एक महीना बीत चुका था।
ग्राम्य पृष्ठभूमि से आए इस युवक को न कोई मार्गदर्शन था, न सुविधा। फिर भी, अपने भीतर की जिजीविषा से उन्होंने वह राह चुनी जो कठिन तो थी, लेकिन सपनों को साकार करने वाली थी।
डॉक्टर बनने की प्रेरणा: एक फिल्म और एक प्रसंग
डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पाँचवीं कक्षा तक वे इंजीनियर बनने की कल्पना करते थे, परंतु छठी कक्षा में देखी एक फिल्म ने उनका जीवन बदल दिया। फिल्म में अभिनेता शशि कपूर डॉक्टर की भूमिका में थे, जिनकी करुणा और सेवा से प्रभावित होकर एक मरीज उपहारस्वरूप चने लाया। उस भावपूर्ण दृश्य ने भूपेंद्र के बालमन को झकझोर दिया और उसी दिन उन्होंने निश्चय कर लिया —
“मैं डॉक्टर बनूंगा, ऐसा डॉक्टर जो मरीज को सिर्फ दवा नहीं, दिल भी दे।”
संघर्ष से सफलता की ओर
मेडिकल प्रवेश परीक्षा में दो बार असफलता का स्वाद चखने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। तीसरे प्रयास में सफलता प्राप्त कर बीकानेर मेडिकल कॉलेज से 1994–1999 बैच में एमबीबीएस और PGIMS रोहतक से 2001–2003 बैच में DCH की डिग्री प्राप्त की।
उनके लिए डॉक्टर बनना सिर्फ करियर नहीं था, वह एक जीवन दर्शन था। एक ओर समाज में इंसानियत और सेवा की अहमियत थी, तो दूसरी ओर उन्होंने खुद के भीतर ईश्वर को कार्य का कर्ता मानते हुए अपने हर परिणाम को उसी परम सत्ता को समर्पित कर दिया।
न्यूनतम दवा, अधिकतम हीलिंग
आज डॉ. भूपेंद्र गुप्ता सोनिया हॉस्पिटल, लाजपत नगर, अलवर में प्रमुख संचालक और वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं। उनका विश्वास है —
“डॉक्टर सिर्फ शरीर नहीं, आत्मा को भी छूता है।”
यही कारण है कि वह बच्चों की दवा से अधिक पोषण, काउंसलिंग और सकारात्मक संवाद पर जोर देते हैं।
वह बाज़ारू उत्पादों के स्थान पर घर के बने भोजन जैसे खिचड़ी, दलिया आदि को प्राथमिकता देने की सलाह देते हैं। उनका सिद्धांत है —
“Minimal medicine, Maximum healing”,
जिसमें वह मरीज के साथ कनेक्ट होकर हीलिंग एनर्जी और पॉजिटिव वाइब्स से उपचार करते हैं।
ध्यान, श्रद्धा और समर्पण
प्रातः 5 बजे उठकर नियमित मेडिटेशन और मॉर्निंग वॉक करने वाले डॉ. गुप्ता अपने दिन की शुरुआत आध्यात्मिक ऊर्जा से करते हैं। वह मानते हैं कि ईश्वर ही नियंता है और हमें कर्म तो पूरी निष्ठा से करना चाहिए, परंतु फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए।
उनका जीवन मंत्र है —
“रोल निभाइए, परिणाम नहीं बांधिए।”
नई पीढ़ी को संदेश
डॉ. भूपेंद्र नई पीढ़ी को प्राकृतिक जीवन शैली, अध्यात्म से जुड़ाव और भौतिक लालसाओं से दूरी अपनाने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं,
“डिप्रेशन, हाइपरटेंशन और मधुमेह जैसी बीमारियाँ भौतिक लालचों की देन हैं। यदि व्यक्ति स्वयं से और प्रकृति से जुड़ जाए तो इनका निराकरण संभव है।”
परिवार: शक्ति और प्रेरणा
डॉ. गुप्ता की धर्मपत्नी श्रीमती सोनिया उनके जीवन की नैतिक शक्ति हैं। उनकी दो बेटियाँ हैं —
श्रेया अग्रवाल, जो एमबीबीएस इंटर्न हैं
सिया अग्रवाल, जो नोएडा स्थित AMITY यूनिवर्सिटी से इंटीरियर डिजाइनिंग में स्नातक कर रही हैं।
रिश्ते, श्रद्धा और स्मृति
वह अपने गुरु श्री मनोहर लाल, प्रेरणास्रोत डॉ. सुशील जैन, भतीजे और सहपाठी डॉ. दयाल शर्मा, और बचपन के मित्र नीरज सिंघल को आज भी स्नेहपूर्वक स्मरण करते हैं।
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