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    चंडीगढ़ निगम के 15 साल से अनुबंध पर काम कर रहे JE होंगे नियमित, हाईकोर्ट का आदेश

    पंजाब। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ नगर निगम में वर्ष 2007 से 2010 के बीच अनुबंध आधार पर नियुक्त जूनियर इंजीनियरों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें 6 सप्ताह के भीतर नियमित करने का आदेश दिया है।

    जस्टिस जगमोहन बंसल ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति तय प्रक्रिया से, विज्ञापन जारी कर, तय योग्यता और आयु सीमा के आधार पर स्वीकृत पदों पर हुई थी। ऐसे में 15 साल से अधिक समय तक उन्हें संविदा पर रखना न केवल अनुचित है, बल्कि यह शोषण की श्रेणी में आता है। 

    कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी याचिकाकर्ताओं को छह सप्ताह के भीतर नियमित किया जाए। यदि निर्धारित समय में आदेश जारी नहीं होता है, तो उन्हें स्वतः नियमित माना जाएगा और वरिष्ठता तथा नियमित वेतनमान का लाभ मिलेगा। याचिकाकर्ता दिलदीप सिंह व अन्य को 2007 से 2010 के बीच नगर निगम ने विज्ञापनों के माध्यम से अनुबंध पर नियुक्त किया था। उस समय अधिकतम आयु सीमा 35 वर्ष और आवश्यक योग्यता डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग थी। चयन प्रक्रिया में दस्तावेजों की जांच और साक्षात्कार शामिल था। 

    नियुक्ति पत्र में स्पष्ट किया गया था कि यह नियुक्ति संविदा पर होगी और स्थायी नियुक्ति का दावा नहीं किया जा सकेगा। वर्ष 2012 में निगम ने संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए समिति गठित की, लेकिन रिपोर्ट नहीं आई। 2014 और 2016 में निगम ने सामान्य सदन में प्रस्ताव पारित कर नियमितीकरण की सिफारिश की और इसे चंडीगढ़ प्रशासन को भेजा, लेकिन प्रशासन ने कोई नीति नहीं होने का हवाला देते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया। 

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के जैग्गो बनाम भारत संघ (2024) और उमा देवी फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि लम्बे समय तक अस्थायी कर्मचारियों को पद रिक्त रहते हुए संविदा पर रखना अस्वीकार्य है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बैकडोर एंट्री से नहीं आए थे, बल्कि खुले विज्ञापन और प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया से नियुक्त हुए थे। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह अनैतिक, असंगत और मनमाना है कि नियमित ग्रुप-डी कर्मचारी इंजीनियरों से अधिक वेतन पा रहे हैं। यह स्थिति प्रशासनिक दृष्टि से भी अव्यावहारिक है और संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। कोर्ट ने प्रशासन को यह संदेश भी दिया कि सरकारी संस्थानों को मॉडल एम्प्लॉयर की तरह काम करना चाहिए और लम्बे समय तक संविदा या अस्थायी कर्मचारियों का शोषण बंद होना चाहिए।

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